Headlines
Loading...
Bal Adhikar or Bal Sanrakshan - बाल अधिकार एवं बाल संरक्षण

Bal Adhikar or Bal Sanrakshan - बाल अधिकार एवं बाल संरक्षण

Bal Adhikar or Bal Sanrakshan - इस पोस्ट में आप Bal Adhikar or Bal Sanrakshan in Hindi, india gk,  के बारे में जानकारी प्राप्त करोगे हमारी ये पोस्ट India GK की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है जो की BANK, SSC, UPSC, BSTC, RAJ. POLICE, PATWARI. REET , SI, HIGH COURT, पटवारी राजस्थान पुलिस और RPSC में पूछा जाता है। 

Bal Adhikar or Bal Sanrakshan - बाल अधिकार एवं बाल संरक्षण

अन्तर्राष्ट्रीय बाल दिवस सर्वप्रभम 20 नवम्बर, 1954 को मनाया गया। इस दिवस की परिकल्पना एक भारतीय नागरिक वी. के.कृष्ण मेनन ने थी।

20 नवम्बर का बाल दिवस के रूप में महत्त्व इसलिए और बढ़ जाता है। क्योंकि इसी दिन 1959 में सयुक्त राष्ट्र को महासभा ने बाल अधिकारों की घोषणा की थी। वर्ष 1989 में 20 नवम्बर को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अभिसमय को अपनाया। यह अभिसमय सितम्बर, 1990 में प्रभाव में आया। 
इस समझौते पर विश्व के 196 राष्ट्रों ने हस्ताक्षर करते हुए अपने देश के सभी बच्चों को जाति, धर्म, लिंग, भाषा आदि के आधार पर बिना किसी भेदभाव के संरक्षण देने का वचन दिया है। इस बाल अधिकार समझौते पर भारत ने 1992 में हस्ताक्षर कर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की
Bal Adhikar or Bal Sanrakshan
Bal Adhikar or Bal Sanrakshan


भारत में बाल अधिकार: 

भारत में भी पूरी दुनिया के साथ 20 नवम्बर को बाल अधिकर दिवस मनाया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय नियम के अनुसार बालक का आशय है, वो व्यक्ति जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम है। यह वैश्विक स्तर पर बालक की परिभाषा है, जिसे बाल अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय में स्वीकार किया गया है। 
भारत में भी 18 वर्ष की उम्र से कम का व्यक्ति बालक माना गया है। 18 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति वयस्क माना जाता है एवं मतदान कर सकता है, ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त कर सकता है या किसी कानूनी समझौते में शामिल हो सकता है।

भारतीय संविधान में सभी बच्चों के अधिकारों के संरक्षण सुनिश्चित करने हेतु निम्न प्रावधान किए गए हैं

अनुच्छेद 15( 3)- यह अनुच्छेद राज्य को महिलाओं एवं बच्चों के लिये किसी भी प्रकार का विशेष प्रावधान करने से नहीं रोकता।
अनुच्छेद-21क- राज्य निर्धारित विधि से 6-14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा।
अनुच्छेद-24- 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों, खदानों अथवा अन्य किसी परिसंकटमय व्यवसाय में रोजगार पर लगाना निषिद्ध है।
अनुच्छेद-39(ङ)- राज्य सुनिश्चित करे कि कामगारों, पुरुषों एवं महिलाओं तथा छोटी आयु के बच्चों के स्वास्थ्य एवं शक्ति का दुरुपयोग ना हो तथा नागरिकों को आर्थिक तंगी के कारण उनकी आयु अथवा शक्ति के अनुपयुक्त उप व्यवसायों में जोर-जबरदस्ती से न धकेला जाए।
अनुच्छेद-39( च) - शोषण के विरुद्ध बच्चों एवं युवाओं के अधिकारों की सुरक्षा की जावे और स्वतंत्र व गरिमामय वातावरण उनके स्वस्थ विकास के अवसर प्रदान किये जाएँ। बच्चों और युवाओं को शोषण तथा नैतिक और भौतिक खतरों से सुरक्षा प्रदान की जावे ।
अनुच्छेद-45- राज्य सभी बच्चों को उनकी 6 वर्ष की आयु पूरी होने तक प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल तथा शिक्षा प्रदान करने के प्रयास करेगा।
अनुच्छेद 51क(ट)- छ: वर्ष की आयु से चौदह वर्ष के आयु के बच्चों के माता-पिता और प्रतिपाल्य के संरक्षक, जैसा मामला हो, उन्हें शिक्षा के अवसर प्रदान करें। बालकों को उनकी सुकुमार अवस्था का ध्यान रखे बिना उन्हें किसी भी प्रकार का मानसिक या शारीरिक कष्ट पहुँचाना, उनसे बलात् श्रम करवाना, शारीरिक या यौन शोषण करना, भिक्षावृत्ति करवाना आदि कार्य बालकों के उत्पीड़न व उनके विरुद्ध अपराध की श्रेणी में आते हैं।

. इसके अलावा भारतीय संविधान में बच्चों को वयस्क पुरुष और महिला के समान अधिकार भी प्राप्त हैं। अनुच्छेद 14 के तहत देश के सभी नागरिकों (जिनमें बालक भी शामिल हैं) को समानता का अधिकार, अनुच्छेद 15 के तहत भेदभाव के विरुद्ध अधिकार, अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार आदि प्राप्त हैं।

बाल विकास के लिए योजनाएँ एवं प्रयासः 

हमारे देश में कानूनन विवाह योग्य न्यूनतम आयु लड़कों की 21 वर्ष व लड़कियों की 18 वर्ष निर्धारित की गई है। इससे बालकों का कच्ची उम्र में विवाह कर देने पर उनके शारीरिक व मानसिक विकास पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से संरक्षण होता है।

बाल विवाह की कुप्रथा पर रोक लगाने के लिए अजमेर ( राजस्थान) के श्री हरबिलास शारदा ने 1929 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम प्रस्तावित किया जो गवर्नर जनरल व वायसराय लॉर्ड इरविन के समय में सितम्बर, 1929 में केन्द्रीय एसेंबली द्वारा पारित किया गया तथा 'शारदा एक्ट' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह अधिनियम 1 अप्रैल, 1930 से पूरे देश में लागू हुआ। इसके तहत लड़की की विवाह योग्य न्यूनतम आयु 14 वर्ष एवं लड़कों की 18 वर्ष निर्धारित की गई थी।

2006 में शारदा एक्ट को समाप्त कर संसद द्वारा पारित नया अधिनियम बाल विवाह (निरोध) अधिनियम 2006' (Child Mar riage (Prohibition) Act, 2006) 1 नवम्बर, 2007 से लागू किया गया है। इसके तहत भी विवाह की न्यूनतम आयु लड़के के लिए 21 वर्ष व लड़की की 18 वर्ष निर्धारित की गई है।

इस अधिनियम में एक वयस्क पुरुष (18 वर्ष या अधिक उम्र का) द्वारा बाल विवाह करने पर उसे एवं बाल विवाह के लिए दोषी या बाल विवाह को बढ़ावा देने वाले सभी व्यक्तियों को 2 साल का कठोर कारावास या एक लाख रुपए का जुर्माना या दोनों सजाओं से दण्डित किये जाने का प्रावधान है।

संविधान के अनुच्छेद 23(2 ) में मानव से बलात श्रम लेने को निषिद्ध किया गया है। इस प्रकार बच्चों से भी बलात श्रम लेना निषिद्ध है।

• बाल (श्रम बंधक ) कानून, 1933: 

माता-पिता अथवा अभिभावकों द्वारा बालकों के श्रम को बंधक बनाने के कृत्य पर अंकुश लगाने के मूल उद्देश्य से यह वैधानिक प्रावधान किया गया है। कानून के तहत बालकों ेेके श्रम को बंधक रखने वाले किसी भी मौखिक अथवा लिखित समझौते को निरस्त बना दिया गया है। 

कारखाना कानून, 1948: 

कारखाना कानून के तहत उन सभी व्यक्तियों को बालक की श्रेणी में शामिल किया गया है जिन्होंने 15 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है। कानून के तहत बालकों एवं महिलाओं से सध्या 7 से प्रातः 6 बजे तक कार्य कराए जाने का प्रतिषेध है। यह कानून बच्चों को काम पर लगाने को गैर कानूनी घोषित करता है।

गुरुपदस्वामी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ही बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) कानून, 1986 बनाया गया। इसकी धारा 3 के अन्तर्गत घरेलू इकाइयों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के प्रतिष्ठानों में 14 वर्ष से कम आयु वाले बालकों के नियोजन का प्रतिषेध किया गया है।
खतरनाक उद्योगों में 14 से 18 साल की उम्र तक के किशोरों के काम पर भी रोक लगाई गई है।

• राष्ट्रीय बाल नीति, 2013 (NPC - National Policy for Children, 2013): 

सरकार ने 26 अप्रैल, 2013 को नई राष्ट्रीय बाल नीति घोषित की। इसमें 18 वर्ष से कम आयु के इंसान को 'बालक' माना गया है। 
बाल श्रम के उन्मूलन हेतु 26 सितम्बर, 1994 को एक राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन प्राधिकरण की स्थापना की गई थी।

द जुवेनाइल जस्टिस (केयर एण्ड प्रोटेक्शन ) ऑफ चिल्ड्रेन एक्ट, 2000: 

किसी भी बालक को किसी जोखिमपूर्ण कार्य में लगाने या उसे बंधुआ मजदूर के रूप में रखने को अपराध घोषित किया है तथा जेल की सजा का प्रावधान किया है।

बाल अधिकारों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय आयोग (NCPCR): 

इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। यह एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना संसद के अधिनियम 'बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005' के तहत मार्च, 2007 में की गई इसमें एक अध्यक्ष व 6 सदस्य होंगे। छः सदस्यों में से कम से कम दो महिलाएँ होंगी।

लैंगिक हमला, लैंगिक उत्पीड़न और अश्लील साहित्य के अपराधों से बालकों का संरक्षण करने और ऐसे अपराधों का विचारण करने के लिए 'लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 ' (Protection of Children from Sexual Offence Act, 2012) को 14 नवंबर, 2012 से पूरे देश में लागू किया गया है। राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के अन्तर्गत आने वाले प्रकरण की सुनवाई व निस्तारण के लिए प्रत्येक जिले में समर्पित विशेष पोक्सो न्यायालयों की स्थापना की गई है इस अधिनियम में इन अपराधों के लिए अपराधी पर 7 वर्ष से आजीवन कारावास तक का प्रावधान है।

सरकार ने बालकों की तस्करी के बढ़ते रूपों में शामिल लोगों को दंडित करने के लिए सख्त प्रावधानों के साथ व्यक्तियों की तस्करी ( रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास ) विधेयक 2017 पेश किया है। नये विधेयक में मानव तस्करी के अपराधियों के सजा को दोगुना करने और ऐसे मामलों के अतिशीघ्र परीक्षण के लिए विशेष अदालतों के प्रावधान को निर्धारित किया है। इसमें आजीवन कारावास तथा उनकी संपत्ति को छीन लिये जाने का कड़ा दंड है।

बालकों व किशोरों से संबंधित अपराधों एवं संरक्षण के संबंध में सर्वप्रथम किशोर न्याय अधिनियम 1986 में अस्तित्व में आया, जिसे देशभर में सन् 2000 से लागू किया गया। इसमें सन 2006 व 2011 में कुछ संशोधन किये गए। सन 2015 में इस कानून में व्यापक परिवर्तन किये गए और यह एक नए स्वरूप में 'किशोर न्याय         ( बालकों की देख-रेख एवं संरक्षण अधिनियम, 2015 )' के नाम से लागू किया गया।

राज्य में बच्चों के समग्र विकास हेतु विभिन्न विभागों के मध्य समन्वय स्थापित करने, बाल अधिकारों के संरक्षण, बच्चों से संबंधित मुद्दों पर समाज में चेतना जागृत करने तथा उनको विकास की मुख्य धारा में लाने के उद्देश्य से निदेशालय, समेकित बाल विकास सेवाएँ का पृथक से गठन किया गया है। वर्ष 2013-14 में 17 मई, 2013 से बाल अधिकारों के संरक्षण एवं पुनर्वास हेतु निदेशालय, बाल अधिकारिता का गठन किया गया|

बालश्रम (संशोधित) अधिनियम, 2016:

बालश्रम अधिनियम, 1986 को संशोधित किया गया। इसके तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मेहनत-मजदूरी जैसा शारीरिक काम कराना जुर्म माना गया है। इस संशोधन के बाद 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए पारिवारिक उद्यमों में काम करने को वैध माना गया है।
14 से 18 वर्ष के किशोरों के लिए खतरनाक घोषित किए गए क्षेत्रों में काम करना निषेध किया गया।
बाल मजदूरी के आरोप में पहली बार पकड़े जाने पर 2000 से 5000 रुपये तक का जुर्माना या 6 माह से 3 वर्ष तक कैद की सजा या दोनों का प्रावधान है।
दूसरी बार पकड़े जाने पर सीधे सालभर से 3 साल तक की कैद का प्रावधान है।

शिक्षा का अधिकार

86 वें संविधान संशोधन, 2002 के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 21क को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया है।
इसके तहत 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की गई है

0 Comments: