Headlines
Loading...
Bhartiya Samvidhan Nirman aur Samvidhan ki Visheshta

Bhartiya Samvidhan Nirman aur Samvidhan ki Visheshta

Bhartiya Samvidhan Nirman aur Samvidhan ki Visheshtaकिसी देश का संविधान उस देश की शासन व्यवस्था को सुगमतापूर्वक एवं सुचारू रूप से चलाने वाले बुनियादी नियमों एवं विनियमों का संग्रह होता है। इसे देश की 'आधारभूत विधि' कहा जा सकता है। यह राज्य के मुख्य अंगों की शक्तियों को परिभाषित करता है, उनके उत्तरदायित्वों का निर्धारण करता है और उनके पारस्परिक संबंधों तथा जनता के साथ संबंधों को विनियमित करता है। यह देश का सर्वोच्च कानून है जिससे उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों (नागरिकों) के आपसी संबंध तय होने के साथ-साथ लोगों व सरकार के तथा विभिन्न राज्य सरकारों व केन्द्र सरकार के मध्य आपसी संबंध निर्धारित होते हैं। 

 भारतीय संविधान का निर्माण एवं संविधान की प्रमुख विशेषताएँ

Bhartiya Samvidhan Nirman aur Samvidhan ki Visheshta


भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है जिसका निर्माण भारतवासियों की एक संविधान निर्मात्री सभा द्वारा किया गया।

संविधान निर्माण

संविधान सभाः संविधान सभा सिद्धान्त का सर्वप्रथम विचार सन् 1895 के 'स्वराज्य विधेयक' में व्यक्त हुआ था जिसे बाल गंगाधर तिलक के निर्देशन में तैयार किया गया था।

संविधान सभा का गठन :

संविधान के निर्माण हेतु केबिनेट मिशन योजना के तहत जुलाई, 1946 में संविधान सभा के गठन हेतु अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचन हुए। संविधान निर्मात्री सभा जनप्रतिनिधियों की वह सभा भी जिसने भारत का संविधान तैयार करने का महती कार्य किया। केबिनेट मिशन योजना के अनुसार संविधान सभा में निम्न 389 सदस्य चुने जाने थे

(1) 292- ब्रिटिश प्रांतों की विधान परिषदों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि।
(2) 93 - देशी रियासतों के प्रतिनिधि।
(3) 4- चीफ कमिश्नर शासित क्षेत्र (अजमेर-मेरवाड़ा, दिल्ली, कूर्ग एवं ब्रिटिश बलूचिस्तान) के प्रतिनिधि। 

संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा किया गया।

1. प्रत्येक प्रान्त की सीटों का आवंटन उसकी जनंसख्या के अनुपात किया जाना था अर्थात प्रत्येक 10 लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि चुना जाना था।
 2. प्रत्येक ब्रिटिश प्रांत को आवंटित सीटों का निर्धारण तीन समुदायों के बीच किया जाना था अर्थात् मतदाताओं को तीन वर्गों में बाँट दिया गया, यथा 1. मुस्लिम, 2. सिख, 3. सामान्य (मुस्लिम व सिख को छोड़कर) 
3. प्रत्येक समुदाय के लिए आवंटित सीटों के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव प्रांतीय विधानसभाओं में उस समुदाय के सदस्यों द्वारा एकल संक्रमणीय मत तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर किया जाना था। 
4. संविधान सभा में देशी रियासतों के लिए आवंटित 93 प्रतिनिधियों का चयन (मनोनयन) रियासतों के प्रमुखों द्वारा किया गया।

इस प्रकार कैबिनेट मिशन योजना के आधार पर संविधान सभा के गठन के लिए जुलाई-अगस्त 1946 में चुनाव हुए।
संविधान सभा आंशिक रूप से चुनी हुई (11 ब्रिटिश प्रांतों के सदस्यों का चुनाव) तथा आंशिक रूप से नामांकित (देशी राज्यों के सदस्यों का नामांकन हुआ) निकाय बनी।

जुलाई-अगस्त 1946 में संविधान सभा के कुल 389 में से 296 सदस्यों के लिए चुनाव हुए।

देशी रियासतों के प्रतिनिधियों के अलावा शेष 296 सदस्यों में से 208 सदस्य काँग्रेस के व 73 मुस्लिम लीग के चुने गए तथा शेष स्थान खाली रहे। लीग ने संविधान सभा में शामिल होना स्वीकार नहीं किया। मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन योजना का विरोध किया था क्योंकि इस योजना में पृथक पाकिस्तान की माँग को अस्वीकार कर दिया गया था।
संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन 9 दिसम्बर, 1946 को दिल्ली में शुरू हुआ।इसमें 207 सदस्यों ( मुस्लिम लीग व देशी रियासतों के प्रतिनिधियों को छोड़कर) ने भाग लिया। इसी दिन डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा इसके अस्थायी अध्यक्ष बनाए गए। मुस्लिम लीग ने इसका बहिष्कार किया।

.11 दिसम्बर, 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सर्वसम्मति से संविधान  सभा  का स्थायी सभापति (अध्यक्ष) चुन लिया गया और अंत तक वे ही उसके सभापति रहे। संविधान सभा के उपाध्यक्ष श्री एच. सी. मुखर्जी चुने गये। 
संविधान सभा की प्रारूप समिति की के अध्यक्ष डॉ.बी.आर.अम्बेडकर स्वतंत्रता से पूर्व पूर्वी बंगाल से तथा बाद में बंबई से सदस्य निर्वाचित हुए थे।  

देश के विभाजन के बाद भारत की संविधान सभा में 324 सदस्य (235 ब्रिटिश प्रांतों के एवं 89 देशी रियासतों के) थे परन्तु बाद में मुस्लिम लीग के सदस्यों द्वारा त्यागपत्र दे दिये जाने पर केवल 299 (229 ब्रिटिश प्रांतों के70 देशी रियासतों के) सदस्य रह गये थे जिनकी प्रथम बैठक 31 अक्टूबर, 1947 को हुई। 

उद्देश्य प्रस्तावः 

जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा के सामने 13 दिसम्बर, 1946 को संविधान का उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया जो 22 जनवरी, 1947 को सर्वसम्मति से पारित किया गया। इसमें संविधान सभा के उद्देश्यों को परिभाषित किया गया था एवं भारत के भावी प्रभुतासंपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य की रूपरेखा दी गई थी जिसमें संघीय राज्य व्यवस्था की परिकल्पना की गई थी। यह एक ऐतिहासिक प्रस्ताव था जिसमें स्वतंत्र भारत के संविधान के मूल आदर्शों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई तथा वह फ्रेमवर्क सुझाया गया था जिसके तहत संविधान निर्माण का कार्य आगे बढ़ना था। इसमें भारत को एक 'स्वतंत्र सम्प्रभु गणराज्य' घोषित किया गया था। इसने संविधान के स्वरूप को काफी हद तक प्रभावित किया।उद्देश्य प्रस्ताव के परिवर्तित स्वरूप से संविधान की उद्देशिका बनी।  

प्रारूप समिति (Draft Committee) : 

संविधान सभा की सभी समितियों में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण प्रारूप समिति थी। इसका गठन 29 अगस्त, 1947 को हुआ। इस समिति के अध्यक्ष डॉ. बी. आर. अम्बेडकर थे एवं इसमें 6 अन्य सदस्य थे। इसे नए संविधान का प्रारूप तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसमें निम्न सात सदस्य थे- 
  • डॉ. बी.आर. अम्बेडकर (अध्यक्ष)
  • एन. गोपालास्वामी अय्यर  
  • अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर
  • डॉ. के.एम. मुंशी
  • एन. माधव रॉय
  • सैयद मोहम्मद सादुल्ला
  • टी.टी. कृष्णामाचारी

प्रथम वाचन 

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने सभा में 4 नवम्बर, 1948 को संविधान का अंतिम प्रारूप पेश किया। इस दिन संविधान पहली बार पढ़ा गया। इस प्रथम वाचन कहा जाता है। सभा में इस पर पाँच दिन 9 नवम्बर, 1948 तक आम चर्चा हुई।

द्वितीय वाचन : 

संविधान पर दूसरी बार 15 नवम्बर, 1948 से विचार होना शुरू हुआ। इनमें संविधान के प्रत्येक पद पर विचार किया गया यह कार्य 17 अक्टूबर, 1949 तक चला।

तृतीय वाचन : 

संविधान पर तृतीय वाचन 14 नवम्बर, 1949 से शुरु डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने द कांस्टिट्यूशन ऐज सैटल्ड बाई द असेंम्बली बी पास्ड' प्रस्ताव पेश किया। संविधान के प्रारूप पर पेश यह प्रस्ताव संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर, 1949 को पारित किया गया। उस दिन सभा में उपस्थित 284 सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए 9 दिसम्बर,1946 से 26 नवम्बर, 1949 तक संविधान सभा को अपना कार्य पूर्ण करने में वर्ष 11 माह व 18 दिन लगे। नागरिकता, चुनाव, तदर्थ संसद, 2 अस्थायी व परिवर्तनशील नियम तथा कुछ अन्य प्रावधान- अनु. 5,6,7, 8, 9,60, 324, 366, 367, 379, 380, 388, 391, 392 व 393 आदि 26 नवम्बर, 1949 को स्वतः ही लागू हो गए

संविधान की प्रस्तावना में 26 नवम्बर, 1949 का उल्लेख उस दिन के रूप में किया गया है जिस दिन भारत के लोगों ने संविधान सभा में संविधान को अपनाया। संविधान के शेष प्रावधान तथा प्रस्तावना 26 जनवरी, 1950 को लागू हुए। यह दिन (26 जनवरी, 1950 ) संविधान के लागू होने का दिन माना जाता है और इसकी स्मृति के रूप में इसे प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को संविधान की शुरुआत के रूप में इसलिए चुना गया क्योंकि इसका अपना ऐतिहासिक महत्त्व है। इसी दिन 1930 में ( 26 जनवरी, 1930 को) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (दिस. 1929) में पारित हुए प्रस्ताव के आधार पर पूर्ण स्वराज्य दिवस मनाया गया था। संविधान सभा की अंतिम (12वीं) बैठक 24 जनवरी, 1950 को हुई। इसके बाद संविधान सभा विघटित हो गई। 
26 जनवरी, 1950 से भारत 'एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य' बन गया।

संविधान की शुरुआत के साथ ही संविधान सभा भारतीय गणराज्य की अंतर्कालीन संसद (Interim Parliament) के रूप में परिवर्तित हो गई। जो 26 जनवरी, 1950 से लेकर 17 अप्रैल, 1952 तक अस्तित्व में रही। 17 अप्रैल, 1952 को भारत की प्रथम निर्वाचित संसद का गठन हुआ। डॉ. राजेन्द्र। प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति नियुक्त किए गए। संविधान की शुरुआत के साथ ही भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 और भारत शासन अधिनियम, 1935 को समाप्त कर दिया गया।
संविधान के गौरवपूर्ण मूल्यों को संविधान की प्रस्तावना में रखा गया है। 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा यथा संशोधित इस उद्देशिका या प्रस्तावना (Preamble) में संविधान के ध्येय और उसके उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन है।

उद्देशिका (Preamble)

हम भारत के लोग भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:

सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26-11-1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

इस उद्देशिका में 1976 में हुए 42वें संविधान संशोधन द्वारा समाजवादी, पंथ निरपेरक्ष तथा अखंडता शब्द जोड़े गए हैं। उद्देशिका में केवल एक ही बार (1976 में) संशोधन हुआ है।

*संविधान सभा की महिला सदस्य : 

सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृतकौर, श्रीमती जी. दुर्गाबाई देशमुख व बेगम एजाज रसूल 

संविधान का केवल एक ही प्रावधान ऐसा था जो लगभग बिना किसी वाद-विवाद या बहस के पारित हो गया। यह प्रावधान 'सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार' का था, जिसका आशय है धर्म, जाति, लिंग, शिक्षा व आय के आधार पर बिना किसी भेदभाव के एक निश्चित उम्र प्राप्त सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार।


संविधान की प्रमुख विशेषताएँ

विशालतम लिखित संविधान : भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है। सर आइवर जेनिंग्स ने भारतीय संविधान को 'विश्व का सबसे बड़ा और विस्तृत संविधान' कहा है। मूल रूप से संविधान में प्रस्तावना, 2 भागों में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थी। वर्तमान में 26 भाग, 440 से अधिक अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ हैं। विश्व के किसी भी संविधान में इतने अनुच्छेद नहीं है।

विभिन्न स्रोत : 

भारतीय संविधान में विश्व के कई देशों के संविधान के साथ भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रावधानों को शामिल किया गया है। संविधान का अधिकांश ढाँचागत भाग भारत सरकार अधिनियम, 1935 से लिया गया है। विभिन्न देशों के संविधान से लिए गए प्रावधान अग्र प्रकार हैं_

भारत सरकार अधिनियम, 1935 से लिये गये प्रावधान

  • संघीय व्यवस्था,
  • कार्यपालिका शक्तियों का राष्ट्रपति में निहित होना (अनु. 53)
  • अटॉर्नी जनरल की नियुक्ति तथा शक्तियाँ,
  • राष्ट्रपति की विधेयक पर स्वीकृति सम्बन्धित प्रावधान अर्थात् वीटो शक्ति
  • राष्ट्रपति के आपातकालीन उपबंध,
  • सर्वोच्च न्यायालय की राष्ट्रपति को सलाह देने की शक्ति 
  • संघीय लोकसेवा आयोग की स्थापना व शक्तियाँ,
  • सातवीं अनुसूची में सम्मिलित तीन सूचियाँ

ब्रिटिश संविधान से-

  • सरकार का संसदीय स्वरूप एवं सर्वाधिक मत (बहुमत) के आधार पर चुनाव में जीत का फैसला एवं विधायिका में अध्यक्ष का पद और उनकी भूमिका एवं कानून निर्माण की विधि।
  • विधि का शासन, कार्यपालिका का विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायित्व
  • मंत्रिमण्डलीय प्रणाली
  • इकहरी या एकल नागरिकता का प्रावधान 

अमेरिका के संविधान से

  • संविधान की प्रस्तावना का विचार,
  • मौलिक अधिकारों की सूची (बिल ऑफ राइट्स)
  • न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) की शक्ति, 
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता,
  • राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया एवं उच्चतम व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया। 

आयरलैंड के संविधान से- 

राज्य के नीति निर्देशक तत्व, राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रणाली एवं राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए सदस्यों की मनोनयन प्रक्रिया।

फ्रांस के संविधान से- 

स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्त्व का सिद्धान्त एवं गणतंत्रात्मक व्यवस्था।

कनाडा के संविधान से- 

एक अर्द्ध-संघात्मक सरकार का स्वरूप (सशक्त केंद्रीय सरकार वाली संघात्मक व्यवस्था), केन्द्र व राज्यों के बीच शक्ति वितरण तथा अवशिष्ट शक्तियों का सिद्धान्त । भारतीय संघ के लिए 'यूनियन' शब्द का प्रयोग व राज्यपाल की नियुक्ति।

रूस के संविधान से - मूल कर्त्तव्य (1976 में जोड़े गये) । 
जर्मनी के संविधान से - आपातकालीन उपबंध ।
द. अफ्रीका के संविधान से - राज्यसभा के सदस्यों की निर्वाचन प्रक्रिया, संविधान संशोधन प्रक्रिया।
आस्ट्रेलिया के संविधान से - समवर्ती सूची एवं संसद के संयुक्त अधिवेशन का प्रावधान।
जापान के संविधान से-संविधान में उल्लिखित विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया

संविधान में भारत को प्रभुत्व सम्पन्न, लोकतंत्रात्मक, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य कहा गया है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अनुसार संविधान का उद्देश्य भारत में प्रभुतासम्पन्न, लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना करना है।

प्रभुत्वसम्पन्न राज्य उसे कहते हैं जो बाह्य नियंत्रण से सर्वथा मुक्त हो और अपनी आंतरिक एवं विदेशी नीतियों को स्वयं निर्धारित करता हो।

लोकतंत्रात्मक शब्द से तात्पर्य ऐसी सरकार से है जिसका समूचा प्राधिकार जनता में निहित होता है और जो जनता के लिए, जनता में से तथा जनता द्वारा स्थापित की जाती है। देश का प्रशासन सीधे जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों चलाया किया जाता है।

पंथनिरपेक्ष : 

यह शब्द संविधान के 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। 'पंथ निरपेक्ष' का तात्पर्य ऐसे राष्ट्र से है जो किसी विशेष धर्म को राजधर्म के रूप में मान्यता प्रदान नहीं करता वरन सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता है।

समाजवाद : 

यह शब्द भी 42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। साधारणतया इस शब्द से तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है जिसमें उत्पादन के मुख्य साधन या तो राज्य के हाथ में होते है या उसके नियंत्रण में होते हैं। किन्तु भारतीय समाजवाद मिश्रित अर्थव्यवस्था पर बल देता है।

एकात्मक तथा संघात्मक संविधानः 

भारत का संविधान न तो विशुद्ध संघात्मक है और न विशुद्ध एकात्मक, बल्कि यह दोनों का सम्मिश्रण है। एकात्मक संविधान वह संविधान होता है जिसके अंतर्गत सारी शक्तियाँ केन्द्र सरकार में निहित होती हैं। प्रांतों को केन्द्रीय सरकार के अधीन रहना पड़ता है। इसके विपरीत संघात्मक संविधान वह संविधान होता है जिसमें शक्तियों का केन्द्र व राज्यों में युक्तियुक्त विभाजन रहता है और दोनों सरकारें अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं।

भारतीय संविधान में संघात्मक संविधान की निम्न विशेषताएं पाई जाती हैं 
(1) शक्तियों का विभाजन 
(2) संविधान की सर्वोच्चता
(3) लिखित संविधान 
(4) संविधान की अपरिवर्तनशीलता
(5) स्वतंत्र न्यायपालिका

भारतीय संविधान में एकात्मकता के निम्न लक्षण पाए जाते हैं 
(1) सशक्त केन्द्र
 (2) संविधान का लचीलापन
(3) एक संविधान
(4) इकहरी नागरिकता
(5) एकीकृत न्यायपालिका
 (6) अखिल भारतीय सेवाएँ 
(7) आपातकालीन प्रावधान 
(8) राज्यपालों की नियुक्ति।

कठोर व लचीला संविधान : 

संविधान की नम्यता और अनम्यता उसके संशोधन की प्रक्रिया पर निर्भर करती है। कठोर या अनम्य संविधान उसे माना जाता है जिसमें संशोधन करने के लिए विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता हो, उदाहरण के लिए अमेरिकी संविधान। लचीला या नम्य संविधान वह कहलाता है, जिसमें संशोधन आसानी से किया जा सकता हो जैसे ब्रिटेन का संविधान।

भारत का संविधान न तो लचीला है और न ही कठोर बल्कि यह दोनों का सम्मिश्रण है। संविधान में केवल कुछ ही उपबंध ऐसे हैं जिनमें परिवर्तन करने के लिए एक विशेष प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है जबकि अधिकतर उपबंधों में संसद द्वारा साधारण विधि द्वारा ही परिवर्तन किया जा सकता है।

सरकार का संसदीय रूप : 

भारतीय संविधान ने संसदीय सरकार की स्थापना की है। यह व्यवस्था केन्द्र तथा राज्य दोनों सरकारों में एक सी है। सरकार का यह स्वरूप इंग्लैण्ड की सरकार के समान है। संसदीय प्रणाली में राष्ट्रपति का स्थान इंग्लैण्ड के सम्राट के समान ही है। यह कार्यपालिका का नाममात्र का प्रधान होता है । वास्तविक कार्यपालिका शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों में, जिसे मंत्रिपरिषद कहते है, निहित
होती है। समस्त कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से ही करता है। मंत्रिपरिषद का प्रधान प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।

संसदीय सम्प्रभुता एवं न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वयः 

ससंदीय प्रभुसत्ता ( अर्थात् संसद की प्रभुसत्ता)का सिद्धांत ब्रिटिश शासन प्रणाली की विशेषता है जबकि न्यायिक सर्वोच्चता का सिद्धांत अमरीकी शासन प्रणाली का लक्षण है।

भारतीय संविधान निर्माताओं ने मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हुए भारतीय संविधान में संसदीय प्रभुसत्ता एंव न्यायिक सर्वोच्चता के समन्वय को अपनाया है

मूल अधिकार ( Fundamental Rights ) : 

भारतीय संविधान के भाग 3 में नागरिकों के मूल अधिकारों की व्यवस्था की गई है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में मूल अधिकारों की घोषणा संविधान की एक मुख्य विशेषता होती है। वर्तमान में भारतीय संविधान में नागरिकों को 6 मूल अधिकार प्राप्त हैं। मूल रूप से संविधान में 7 मूल अधिकार थे। 44वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा सम्पत्ति का मूल अधिकार समाप्त कर उसे एक कानूनी अधिकार बना दिया गया है ।

राज्य के नीति निदेशक तत्व : 

भारतीय संविधान भाग 4 में अनु. 36 से 51 तक कुछ ऐसे निर्देशों का उल्लेख है जिन्हें पूरा करना राज्य का पवित्रतम कर्तव्य माना गया है। इन्हें राज्य के नीति-निदेशक तत्व कहा जाता है। इनका उद्देश्य भारत में एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। ये सरकार को कुछ बातें करने और कुछ आदर्श प्राप्त करने का निर्देश देते है। 

मौलिक कर्तव्य : 

मूल संविधान में मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख नहीं किया गया था। इन्हें स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 42वें संविधान संशोधन (सन् 1976) के माध्यम से आंतरिक आपातकाल ( 1975-77) के दौरान भाग 4(क) जोड़कर शामिल किया गया। 
मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख संविधान के भाग 4A (या 4क) के अनु. 51( क) में किया गया है।
42वें संविधान संशोधन के द्वारा नागरिकों के 10 मूल कर्तव्य जोड़े गए थे। 86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा 11वाँ मूल कर्तव्य- अनु. 51 क (ट) |Article 51A (K ) | जोड़ा गया है जिसमें 14 वर्ष तक के बच्चों को माता-पिता/अभिभावकों द्वारा शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है। ये मूल कर्तव्य न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं।

इकहरी नागरिकता : 

भारतीय संविधान इकहरी नागरिकता को मान्यता प्रदान करता है। भारत का प्रत्येक नागरिक केवल भारत का नागरिक है न कि किसी प्रांत का जिसमें वह रहता है। फलतः प्रत्येक नागरिक को नागरिकता से उत्पन्न सभी अधिकार, विशेषाधिकार तथा उन्मुक्तियाँ समान रूप से प्राप्त हैं। इकहरी नागरिकता का प्रावधान ब्रिटिश संविधान से लिया गया है।

वयस्क मताधिकार : 

भारतीय संविधान प्रत्येक वयस्क को मताधिकार प्रदान करता है जिसका प्रयोग करके वह अपने प्रतिनिधियों को देश का शासन चलाने के लिए चुनता है। भारत का प्रत्येक नागरिक वह चाहे स्त्री हो या पुरुष, यदि 18 वर्ष की आयु का हो चुका है तो उसे निर्वाचन में मतदान करने का अधिकार प्राप्त है। इस प्रकार भारतीय संविधान ने देश के सभा वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार प्रदान कर लोकतंत्र की स्थापना में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है।

एकीकृत व स्वतंत्र न्यायपालिका : 

एकीकृत व स्वतंत्र न्यायपालिका का स्थापना भारतीय संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी सारे देश के लिए न्याय प्रशासन की एक ही व्यवस्था करता है जिसके शिखर पर सर्वोच्च न्यायालय है। इसके नीचे राज्य स्त पर उच्च न्यायालय है। राज्यों में उच्च न्यायालय के नीचे क्रमवार अधीनस्थ न्यायालय हैं जैसे जिला अदालतें व अन्य निचली अदालतें। 
स्वतंत्र न्यायपालिका का मुख्य कार्य केन्द्र व राज्यों के बीच विवादों को निपटाना होता है। इसलिए उच्चतम न्यायालय को संविधान का संरक्षक कहा गया है। देश के विधानमंडलों द्वारा बनाई गई विधियों को उच्चतम न्यायालय असंवैधानिक घोषित कर सकता है। उच्चतम न्यायालय द्वारा किया गया संविधान के उपबंधों का निर्वचन अंतिम होता है। स्वतंत्र न्यायपालिका का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य नागरिकों के मूल अधिकारों की संरक्षा करना होता है। उच्चतम न्यायालय न केवल संविधान का वरन् नागरिकों के मूल अधिकारों का भी संरक्षक तथा जागरूक प्रहरी है।
संविधान में न्यायपालिका को बिल्कुल स्वतंत्र रखा गया है जिससे यह निष्पक्ष और निर्भयतापूर्ण न्याय दे सके। इसलिए न्यायपालिका को केन्द्र तथा राज्यों दोनों में से किसी के भी अधीन नहीं रखा गया है।

संविधान की सर्वोच्चता : 

भारतीय संविधान को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। संघ और राज्यों की समस्त सत्ताओं यथा विधायिका, कार्य पालिका व न्यायपालिका की सत्ताओं का मूल स्रोत संविधान है और ये सभी संविधान के अधीन हैं। 

केन्द्रोन्मुख संविधान : 

भारतीय संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि संघात्मक होते हुए भी उसमें केन्द्रीयकरण की सबल प्रवृत्ति है। भारतीय संविधान में केन्द्र को सशक्त बनाया गया है। आपातकालीन प्रावधान संविधान को एकात्मक (केन्द्रोन्मुख) बनाते हैं।
संविधान का केवल एक ही प्रावधान ऐसा था जो लगभग बिना किसी वाद-विवाद या बहस के पारित हो गया। यह प्रावधान 'सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार' का था, जिसका आशय है धर्म, जाति, लिंग, शिक्षा व आय के आधार पर बिना किसी भेदभाव के एक निश्चित उम्र प्राप्त सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार।

सरकार का त्रिस्तरीय ढाँचा : 

मूल रूप से अन्य संघीय प्रावधानों की तरह भारतीय संविधान में दो स्तरीय राजव्यवस्था (केन्द्र व राज्य) का प्रावधान था। बाद में वर्ष 1992 में 73वें व 74वें संविधान संशोधन में तीन स्तरीय (स्थानीय) सरकार का प्रावधान किया गया जो विश्व के किसी और संविधान में नहीं है। सरकार का त्रिस्तरीय ढाँचा निम्न प्रकार है

I संघ या केन्द्र सरकार 
II. राज्य सरकार
III. स्थानीय सरकार (पंचायत व नगरपालिका)

संविधान में एक नया भाग (9) तथा 11वीं अनुसूची जोड़कर वर्ष 1992 के 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायतों को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई। इसी प्रकार से 74वें संविधान संशोधन विधेयक, 1992 ने एक नए भाग 9A तथा नई अनुसूची (12वीं) को जोड़कर नगरपालिकाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।

0 Comments: