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Bharat ka Sarvoch Nyayalaya in Hindi -  सर्वोच्च न्यायालय

Bharat ka Sarvoch Nyayalaya in Hindi - सर्वोच्च न्यायालय

Bharat ka Sarvoch Nyayalaya in Hindiभारत में एकीकृत न्यायपालिका है, जिसके सर्वोच्च स्तर पर सर्वोच्च न्यायालय है, जिसका उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-5 के अध्याय 4 में अनु. 124 से 147 तक मिलता है। भारत में सर्वप्रथम सर्वोच्च न्यायालय (एपेक्स कोर्ट) की स्थापना 1773 ई. के रेग्यूलेटिंग एक्ट के तहत् कलकत्ता में की गई थी, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश सर एलिजा इम्पे व तीन अन्य न्यायाधीश थे । 

Bharat ka Sarvoch Nyayalaya in Hindi

Bharat ka Sarvoch Nyayalaya in Hindi


1935 के भारत शासन अधिनियम के तहत इसका नाम संघीय न्यायालय (फेडरल कोर्ट) कर दिया गया। 1935 में मुख्य न्यायाधीश सर मोरिस वायर को बनाया गया था।

भारत में सर्वोच्च न्यायालय का प्रावधान अमेरिका से लिया गया है, जिसकी स्थापना की अधिसूचना 26 जनवरी, 1950 को राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा की गई तथा इसका गठन 1935 के भारत शासन अधिनियम के तहत 28 जनवरी, 1950 को नई  दिल्ली में किया गया।

ध्यातव्य रहे-सर्वोच्च न्यायालय (S C) का गठन करने तथा S.C. के सम्बन्ध में विधि कानून का निर्माण करने का अधिकार संसद' को प्राप्त है। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय हेग (नीदरलैंड) में है। 

सर्वोच्च न्यायालय संविधान का रक्षक एवं कानूनों की अंतिम व्याख्या करने वाला देश का सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है। स्वतंत्रता से पूर्व इसे फेडरल कोर्ट कहा जाता था। यह सर्वोच्च न्यायालय नहीं था क्योंकि इसके खिलाफ प्रिवी कोन्सिल ( लंदन) में अपील की जा सकती थी।

ध्यातव्य रहे-भारत में संघात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया गया है। लेकिन सम्पूर्ण भारत में एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (भारतीय शासन अधिनियम, 1935 से गृहित) है जिसके अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय के अधीन उच्च न्यायालय/हाईकोर्ट तथा जिला न्यायालय आते हैं।

भारत में न्यायपालिका की संरचन

भारत में सर्वोच्च न्यायालय 
राज्यों में उच्च न्यायालय
जिलों में जिला/सत्र न्यायालय
तहसीलों में अधीनस्थ/मुन्सिफ न्यायालय
गाँवों में ग्राम न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय में कुल न्यायाधीशों की संख्या-संविधान के अनु. 124 के तहत् उच्चतम न्यायालय में न्यायधीशों की संख्या का निर्धारण संसद द्वारा कानून बनाकर किया जाता है। जैसे, प्रारम्भ में उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश सहित ( 7+ 1 ) न्यायाधीशों की संख्या 8 , 1977 में न्यायाधीशों की संख्या 18 तथा 1986 में इन्हें बढ़ाकर 26 कर दी गयी और वर्तमान में अगस्त, 2019 से मुख्य न्यायाधीश सहित कुल न्यायाधीशों की संख्या 31 से बढ़ाकर 34 कर दी गई है। (33 + मुख्य न्यायाधीश)

नियुक्ति-

अनु. 124 के तहत् सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति वरिष्ठता के आधार पर तथा सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति मुख्य न्यायधीश की सलाह से करता है। 
कॉलेजियम प्रणाली के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है। यह व्यवस्था 1993 व 1998 को सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के आधार पर शुरू हुई। केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक आयोग अधिनियम 2014 (13 अप्रैल, 2015 को लागू) द्वारा सर्वोच्च न्यायालय / उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति (कॉलेजियम प्रणाली) की जगह लागू की, लेकिन अक्टूबर, 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे (99वाँ संविधान संशोधन के तहत) रद्द कर दिया। 
अत: अब उसी पुरानी प्रणाली (कॉलेजिया प्रणाली) से ही न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था की जाती है।

ध्यातव्य रहे-भारत में अब तक 2 बार (अपवाद ) वरिष्ठता के क्रम का उल्लंघन हुआ है 
(1) 1973 में हैगडे, शैलट, ग्रोवर इन तीनों को छोड़कर अजीतनाथ रे को बनाया गया।
(ii) 1977 वरिष्ठ एच.आर. खन्ना को छोड़कर न्यायधीश एम.यू. बेग को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया ।
1978 से अब तक वरिष्ठता के क्रम की स्वस्थ परम्परा का पालन किया जा रहा है।

शपथ-

अनु. 124( 6 ) के तहत् सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश को राष्ट्रपति एवं अन्य न्यायाधीशों को मुख्य न्यायाधीश शपथ एवं पद की गोपनीयता की शपथ दिलवाता है। 

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएँ (अनु.124( 3 )-

वह भारत का नागरिक हो।
किसी उच्च न्यायालय में या 2 से अधिक न्यायालयों में पाँच वर्ष तक न्यायधीश के रूप में कार्य कर चुका हो अथवा
राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता हो अथवा 
किसी उच्च न्यायालय में 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो,

ध्यातव्य रहे-न्यायाधीश पद ग्रहण हेतु न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं की गई है। न्यायाधीश किसी मुकदमे पर सबूतों के आधार पर निर्णय देता है। 
मुख्य पीठ-उच्चतम न्यायालय की मुख्य पीठ नई दिल्ली में है इसी कारण सर्वोच्च न्यायालय की बैठकें नई दिल्ली में आयोजित होती हैं। लेकिन राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति पर देश में किसी भी स्थान पर आयोजित की जा सकती हैं। दिल्ली के अलावा श्रीनगर और हैदराबाद में दो बार हो चुकी हैं।

कार्यकाल- 

अनु. 124(4) के न्यायधीश व अन्य न्यायधीशों का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक तहत् सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य होता है लेकिन संविधान में तीन उपबन्ध बनाये गये हैं-
(i) 65 वर्ष की आयु तक कार्य करने के पश्चात् सेवानिवृत।
 (ii) राष्ट्रपति को सम्बोधित कर त्यागपत्र देकर पदमुक्त ? सकता है।
 (ii। ) संवैधानिक कदाचार करने पर संसद के प्रत्येक सदन में दो तिहाई बहुमत से प्रस्तावित करके हटाया जा सकता है।
ध्यातव्य रहे-भारत में 65 वर्ष की आयु तक मुख्य न्यायाधीश अपने पद पर रह सकता है तो अमेरिका में मुख्य न्यायाधीश जीवनपर्यन्त अपने पद पर बना रह सकता है। 

पदत्याग-पदावधि (65 वर्ष) पूर्ण होने पर या राष्ट्रपति को संबोधित त्याग-पत्र द्वारा अथवा महाभियोग द्वारा

न्यायाधीश के ऊपर महाभियोग

अनु. 124 के तहत् यदि न्यायाधीश संविधान संशोधन के अनुसार हो कार्य नहीं करता है, तो न्यायाधीश को उसके पद से महाभियोग प्रक्रिया द्वारा हटाया जाता है [UTET-2017] ।
महाभियोग के तहत् सर्वप्रथम कम-से-कम लोकसभा के 100 सदस्यों या राज्यसभा के 50 सदस्यों के हस्ताक्षरित संकल्प लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को देते हैं। उसके बाद में अध्यक्ष/ सभापति इसकी जाँच करने के लिए त्रिसदस्यीय समिति का गठन करता है, जिसमें दो न्यायाधीश तथा एक प्रतिष्ठित न्यायाधीश शामिल होता हैं। अध्यक्ष इस समिति की रिपोर्ट को संसद के सामने रखता है और यदि संसद इस प्रस्ताव को संसद सदस्यों के बहुमत या उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पारित कर देती है, तो यह पारित प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेज दिया जाता है और राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी कर देता है।

ध्यातव्य रहे-आज तक केवल उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश वी. रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग मई, 1993 में लाया गया पर पारित नहीं हुआ। [REET-2016] कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश सौमित्र सैन के खिलाफ 18 अगस्त, 2011 को राज्यसभा में महाभियोग लाया गया, सौमित्र सैन ने प्रक्रिया के दौरान त्यागपत्र दे दिया था। कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. डी. दिनाकरन के विरुद्ध अगस्त, 2011 में सुनवाई होनी थी परन्तु इससे पहले ही न्यायमूर्ति दिनाकरन ने अपना त्यागपत्र 29 जुलाई , 2011 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रतिभा पाटिल को प्रेषित कर दिया।

वेतन/भत्ते-

संविधान के अनु. 125 के तहत् मुख्य न्यायाधीशों को 2,80,000/- रुपये तथा अन्य न्यायाधीशों को वेतन/भत्ते निर्धारित किये गये हैं जो भारत की संचित निधि से देय है।

कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश-

अनु. 126 के तहत् मुख्य न्यायधीश का पद रिक्त होने या अस्थायी मुख्य न्यायधीश के अनुपस्थित होने या कार्य निर्वहन अक्षमता की स्थिति में राष्ट्रपति किसी न्यायाधीश को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकता है।

तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति-

अनु. 127 के तहत् उच्चतम न्यायालय के सत्र को आयोजित या चालू रखने के लिए गणपूर्ति न हो तो भारत का मुख्य न्यायाधीश किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकता है, जिनका कार्यकाल 2 वर्ष का होता है।


ध्यातव्य रहे-उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश यह नियुक्ति सम्बन्धित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व राष्ट्रपति से परामर्श के पश्चात् ही कर सकता है।

गणपूर्ति-

उच्चतम न्यायालय की बैठक हेतु आवश्यक की संख्या 3 निर्धारित की गई है। परन्तु किसी भी विषय पर गणपूर्ति राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए न्यूनतम 5 न्यायाधीशों की तथा अन्य अपीलीय मामलों की सुनवाई के लिए न्यूनतम 3 न्यायाधीश होना अनिवार्य है। संविधान की व्याख्या का अंतिम अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को है । अब की सबसे बड़ी संवैधानिक पीठ 1973 में केशवानंद भारती मामले में 13 न्यायाधीशों की हुई।

ये भी जाने :-


 भारत के उच्चतम न्यायालय के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस  शरद अरविंद बोबड़े (कार्यकाल 18.11.2019 से 23.04.2021)
भारत के उच्चतम न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश 'हीरालाल जे. कानिया' थे तो प्रथम दलित मुख्य न्यायाधीश 'के.जी. बालकृष्णन' थे।
भारत के उच्चतम न्यायालय की प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश 'मीरा फातिमा बीबी' थी तो उच्च न्यायालय (हिमाचल प्रदेश) की प्रथम भारतीय महिला मुख्य न्यायाधीश 'लीला सेठ' थी। [UPTET-2015]
सर्वाधिक लम्बी अवधि (7 वर्ष) तक रहे मुख्य न्यायधीश 'वाई.वी. चन्द्रचूड़' थे तो सबसे कम अवधि ( 17 दिन) तक रहे मुख्य न्यायाधीश 'के.एन. सिंह' (केदारनाथ सिंह) थे । 
भारत के मुख्य न्यायाधीश जो कार्यवाहक राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति रह चुके हैं 'मोहम्मद हिदायतुल्ला'।                    सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार में प्रदूषण मुक्त पानी व हवा के अधिकार का निर्णय दिया।
1862 में शम्भूनाथ पंडित कलकत्ता उच्च न्यायालय के पहले भारतीय न्यायाधीश बने व 1937 में अन्ना चांडी एक जिला अदालत में भारत में पहली महिला न्यायाधीश बनी
अनुच्छेद 348 के अंतर्गत यह प्रावधान है कि भारत के उच्चतम न्यायालय की समस्त कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होगी ।
भारत में उच्चतम न्यालय ने भारतीय संविधान के बुनियादी ढाँचे का सिद्धान्त केशवानन्द भारती के मामले में दिया। [UPTET-2017]

उच्चतम न्यायालय के कार्य एवं क्षेत्राधिकार

उच्चतम न्यायालय का कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण भारत है। इसलिए उच्चतम न्यायालय भारत के सर्वोच्च न्यायालय के रूप में कार्य करता है।
ध्यातव्य रहे-उच्चतम न्यायालय की समस्त कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होती है।                                  1. प्रारंभिक/मूल क्षेत्राधिकार (अनु. 131) अनु. 131 के तहत् भारत सरकार (संघ) एवं राज्यों एवं दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य आपसी विवाद का निपटारा सर्वोच्च न्यायालय करता है

ध्यातव्य रहे-अन्तर्राज्यीय जल विवाद मूल क्षेत्राधिकार में शामिल नहीं है।

राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति निर्वाचन सम्बन्धी विवाद का निपटारा भी सर्वोच्च न्यायालय करता है। सर्वोच्च न्यायालय जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।

ध्यातव्य रहे-मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32 के तहत्) तथा उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226 के तहत्) पाँच प्रकार के रिट जारी कर सकता है।

अपीलीय क्षेत्राधिकार (अनु. 132 ) - 

अनु. 132 के तहत कोई व्यक्ति किसी अधीनस्थ न्यायालय से संतुष्ट न होने पर उसके विरुद्ध अपील उच्चतम न्यायालय में कर सकता है। इसी कारण उच्चतम न्यायालय देश का सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है। सर्वोच्च न्यायालय में निम्नलिखित तीन प्रकार के मामलों की अपील कर सकते हैं 

(i) दीवानी/सिविल मामले की अपील - 

अनु. 133 के तहत् सिविल कार्यवाही में दिये गये निर्णय या अंतिम आदेश के विरुद्ध अपील तभी की जा सकती है जब उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि इस मामले में कोई सार्वजनिक महत्व छिपा हो।                              (ii) फौजदारी/आपराधिक/दंड संबंधी अपील-अनु. 134 के तहत् दण्ड सम्बन्धी अपील का वर्णन किया गया है।

(iii) संवैधानिक मामले-

अनु. 135 के तहत् यदि संविधान का उल्लंघन हो रहा हो, तो उसकी अपील उच्चतम न्यायालय में की जाती है।

3. परामर्शदात्री/सलाहकारी क्षेत्राधिकार (अनु. 143 )-अनु. 143 के तहत् राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि किसी सार्वजनिक महत्व के विषय पर उच्चतम न्यायालय से सलाह मांग (अब तक 14 बार) सकता है। लेकिन न्यायालय द्वारा दिये गये परामर्श को स्वीकार या अस्वीकार करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है तो न्यायालय भी परामर्श देने हेतु बाध्य नहीं है। [REET-2018]

ध्यातव्य रहे-पहली बार राष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश से 6 दिसम्बर, 1992 के अयोध्या काण्ड पर परामर्श मांगा उस समय राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा थे परन्तु तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वेंकट चलैय्या ने अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए मना कर दिया।

4. न्यायिक पुनरावलोकन/समीक्षा संबंधी क्षेत्राधिकार-

अनु. 137 के तहत् सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि स्वयं द्वारा दिये गये निर्णयों पर पुर्नविचार कर सके और यदि वह उचित समझे तो उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकता है।          

ध्यातव्य रहे-इस क्षेत्राधिकार का प्रयोग सर्वोच्च न्यायालय ने गोलकनाथ केशवानन्द भारती व मिनर्वा के अलावा बैंक राष्ट्रीयकरण मामले में किया था।

5. अभिलेख न्यायालय (अनु. 129 ) -

अनु. 129 के | सर्वोच्च न्यायालय के अपने अभिलेख न्यायालय होते हैं, जिनमें सर्वोच्च । न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय साक्ष्य के रूप में काम में लिये जाते हैं।
न्यायिक सक्रियता-जब न्यायालय केवल कानूनी गतिविधियों । तक सीमित न रहे; अपितु नागरिको को दशा सुधारने तथा मूल अधिकार दिलवाने में सक्रिय हो जाए, तो उसे न्यायिक सक्रियता कहा जाता है, जिससे न्यायालय की सकारात्मक भूमिका बढ़ जाती है। भारत में न्यायिक सक्रियता की शुरूआत 1973 के केशवानंद बनाम भारत संघ (1973) के आधारभूत ढाँचे की संकल्पना के साथ आरम्भ हुई है। इसके जनक सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पी.एन. भगवती हैं।

लोक अदालत-न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती के प्रयासों से 6 अक्टूबर, 1985 को दिल्ली में पहली बार लोक अदालत का आयोजन न्यायिक निर्णय में विलम्ब स्थिति को समाप्त करने के लिए किया गया।

जनहित यायिका-जनहित याचिका वाद (PIL) की शुरूआत का श्रेय न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती व वैंकट चलैया को दिया जाता है। जनता के लिए लगाई जाने वाली याचिका, जिसमें पीड़ित व्यक्ति के बदले अन्य व्यक्ति या संगठन न्याय की मांग कर सकता है। जनहित याचिका द्वारा न्याय मिलने में बढ़त आई है ।CTET-2012|।

कुटुम्ब न्यायालय-इसकी स्थापना परिवार न्यायालय। । अधिनियम-1984 में की गई, इस न्यायालय में आपसी सहमति से विवाद निपटाये जाते हैं।

ग्राम न्यायालय-2 अक्टूबर, 2009 को सर्वप्रथम मध्यप्रदेश के भोपाल जिले की बेरिया जनपद पंचायत में शुरू किया गया 4 राजस्थान में सर्वप्रथम 27 नवम्बर, 2010 को बस्सी (जयपुर) + स्थापित किया गया।

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