Headlines
Loading...
Rajasthan ka Ekikaran -  राजस्थान का एकीकरण

Rajasthan ka Ekikaran - राजस्थान का एकीकरण

हमारे प्रदेश राजस्थान ने अपने वर्तमान स्वरूप में आने से पूर्व काल के अनेक थपेड़ों को सहा है और स्वतंत्रता पश्चात् विभिन्न चरणों में होते हुए  नवम्बर, 1956 को अपने पूर्ण स्वरूप को प्राप्त किया। 

Rajasthan ka Ekikaran -  राजस्थान का एकीकरण

इंग्लैण्ड में जुलाई, 1945 में प्रधानमंत्री चर्चिल (कंजरवेटिव पार्टी) के स्थान पर क्लीमेंट एटली के नेतृत्व में लेबर पार्टी की सरकार बनी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली द्वारा ब्रिटिश संसद में 20 फरवरी, 1947 को की गई एक महत्त्वपूर्ण घोषणा में जून, 1948 तक भारत की शासन व्यवस्था भारतीयों के हाथों में हस्तांतरित करने की बात कही गई। 

तत्कालीन गवर्नर जनरल व वायसराय लार्ड बैवेल को इंग्लैंड वापस बुलाया लिया गया तथा उनके स्थान पर लॉर्ड माउन्टबैटन को भारत का 'वायसराय व गवर्नर जनरल' बनाया गया। लार्ड माउन्टबैटन ने साम्प्रदायिक उन्माद से देश को बचाने के उद्देश्य से सत्ता के हस्तांतरण का कार्य शीघ्रातिशीघ्र करने का फैसला किया। ब्रिटिश संसद ने वायसराय का तत्संबंधी प्रस्ताव 3 जून, 1947 को स्वीकृत किया। ब्रिटिश सरकार की पुष्टि होते ही लार्ड माउन्टबैटन ने 4 जून, 1947 को भारत के विभाजन की घोषणा की, जिसमें यह प्रावधान किया गया कि ब्रिटिश सरकार 15 अगस्त, 1947 को सत्ता हस्तांतरित कर देगी। 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हो गया। भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 नि की धारा 8 के तहत् भारत की सभी देशी रियासतों पर से ब्रिटिश प्रभुसत्ता (Para-  mountcy) समाप्त हो गई तथा देशी रियासतों का यह अधिकार सुरक्षित रखा गया कि वे या तो भारत संघ में विलय हों या पाकिस्तान में मिले ए अथवा स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखें।

Rajasthan ka Ekikaran -  राजस्थान का एकीकरण
Rajasthan ka Ekikaran -  राजस्थान का एकीकरण


देशी रियासतों के मसले को हल करने के लिए 5 जुलाई, 1947 को लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में रियासती विभाग स्थापित किया गया। इस विभाग का सचिव वी.पी. मेनन को बनाया गया। सरदार पटेल ने स्पष्ट कर दिया था कि देशी रियासतें 15 अगस्त, 1947 से पहले ही भारतीय संघ में विलीन हो जाएँ। देशी रियासतों को सार्वजनिक हित में तीन विषय- 'रक्षा, संचार एवं विदेशी मामले' भारत संघ को सौंपने थे तथा शेष विषयों के आंतरिक मामलों में वे स्वतंत्र थे। 

बीकानेर नरेश शार्दूलसिंह ने 7 अगस्त, 1947 को अपनी रियासत के भारत में विलय करने के सम्मिलन पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। ऐसा करने वाले वे प्रथम शासक थे। इसके बाद 14 अगस्त, 1947 तक राज्य की सभी रियासतें भारत संघ में मिल गई। जोधपुर के राजा हणूतसिंह ने पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना व नरेन्द्र मंडल के अध्यक्ष भोपाल के नवाब श्री हमीदुल्ला खाँ से मिल कर अपनी रियासत को एक स्वतंत्र इकाई रखना चाहा था। लेकिन इस षड़यंत्र का पता चलते ही वी. पी. मेनन व लार्ड माउन्टबैटन ने बड़ी चतुराई व कूटनीति से उन्हें भारत में सम्मिलित होने के लिए राजी कर 10 अगस्त, 1947 को विलीनीकरण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करा लिए। प्रारंभ में धौलपुर व जैसलमेर महाराजा भी महाराजा हणूतसिंह के साथ थे लेकिन बाद में वे भारत संघ में ही मिल गए।

इस प्रकार वी.पी. मेनन व सरदार वल्लभ भाई पटेल की दृढ़ इच्छा शक्ति, योग्यता, दूरदर्शिता व चतुराई के बल पर 15 अगस्त, 1947 तक सभी देशी रियासतों का भारत में एकीकरण हुआ व अखंड भारत का स्वरूप सामने आया।

16 दिसंबर, 1947 को स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार ने प्रगतिशील व सुचारू शासन हेतु छोटी-छोटी रियासतों को बड़ी रियासतों में विलीन करने का - निर्णय लिया। रियासती विभाग के निर्णयानुसार केवल वे रियासतें ही अपना पृथक् अस्तित्त्व रख सकती थी जिनकी वार्षिक आय 1 करोड़ व जनसंख्या 10 लाख या न उससे अधिक थी। राजस्थान में केवल चार रियासतें- जयपुर, बीकानेर, उदयपुर ने एवं जोधपुर ही इन शर्तों को पूरा करती थी। राज्य की बड़ी रियासतें एकीकरण के पक्ष में न होकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखने की इच्छुक थी परंतु भारत सरकार के दबाव के फलस्वरूप विभिन्न देशी रियासतों का सम्मिलन कर राजस्थान स के एकीकरण का कार्य प्रारंभ हुआ।

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय राजस्थान 19 देशी रियासतों, 3 चीफशिप (ठिकाने) । यथा- कुशलगढ़, लावा व नीमराणा तथा चीफ कमिश्नर द्वारा प्रशासित'अजमेर-मेरवाड़ा प्रदेश' में विभक्त था। सरदार पटेल के आग्रह एवं दबाव के थे। परिणामस्वरूप यहाँ के शासकों ने एक-एक कर अपनी रियासंतों का विलीनीकरण में कर एकीकृत राजस्थान में गठन का मार्ग प्रशस्त किया।

अपने वर्तमान स्वरूप में 1 नवम्बर, 1956 को आया। इससे पूर्व राजस्थान निर्माण के निम्र चरणों में से गुजरा:

प्रथम चरण मत्स्य संघ (18 मार्च, 1948)

अलवर, भरतपुर, धौलपुर व करौली रियासत व चीफशिप नीमराणा को मिलाकर मत्स्य संघ का निर्माण किया गया व इसका उद्धाटन केन्द्रीय मंत्री एन.वी. गाडगिल द्वारा किया गया। महाराजा धौलपुर 'उदयभानसिंह' को राजप्रमुख, महाराजा करौली को उपराज प्रमुख और अलवर प्रजामंडल के   प्रमुख नेता श्री शोभाराम कुमावत को मत्स्य संघ का प्रधानमंत्री बनाया गया। अलवर इसकी राजधानी बनी। इसे मत्स्य संघ नाम श्री के.एम. मुंशी के आग्रह पर दिया गया।

द्वितीय चरण राजस्थान संघ (25 मार्च, 1948) ः

बाँसवाड़ा, बूंदी, डूंगरपुर, झालावाड़, कोटा, प्रतापगढ़, टोंक, किशनगढ़ व शाहपुरा रियासत तथा चीफशिप कुशलगढ़ को मिलाकर राजस्थान संघ का निर्माण किया गया। कोटा के महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख, बूंदी महाराजा बहादुर सिंह को उपराजप्रमुख तथा प्रो. गोकुललाल असावा को  प्रधानमंत्री बनाया गया। कोटा को राजधानी बनाया गया। इसका उद्घाटन भी श्री गाडगिल के हाथों ही सम्पन्न हुआ।

 तृतीय चरण संयुक्त राजस्थान (18 अप्रैल, 1948)

राजस्थान संघ में उदयपुर रियासत का विलय कर संयुक्त राजस्थान का निर्माण हुआ। पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसका उद्घाटन किया गया। महाराणा मेवाड़ भूपालसिंह राजप्रमुख व माणिक्यलाल वर्मा प्रधानमंत्री बने । उदयपुर को इस नए राज्य की राजधानी बनाया गया। कोटा महाराव भीमसिंह कोउपराजप्रमुख बनाया गया। मंत्रिपरिषद में श्री गोकुल लाल असावा (शाहपुरा) उपप्रधानमंत्री तथा सर्वश्री अभिन्न हरि (कोटा), मोहनलाल सुखाडिया भूरेलाल बया, प्रेमनारायण माथुर (तीनों उदयपुर) और बृजसुन्दर शर्मा (बूंदी) मंत्री के रूप में शामिल किए गए। 

चतुर्थ चरण वृहत् राजस्थान (30 मार्च, 1949) 

(चैत्र शुक्ला प्रतिपदा वि.सं.2006) : 
संयुक्त राजस्थान में जयपुर, जोधपुर, बीकानेर एवं जैसलमेर का विलय कर भारत के उप प्रधानमंत्री श्री सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा जयपुर में वृहत् राजस्थान का विधिवत उद्घाटन किया गया । इससे पूर्व जयपुर जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर और सिरोही की पाँच रियासतें ही ऐसी बची थीं जो एकीकरण में शामिल नहीं हुई थीं। इनके अलावा 19 जुलाई, 1948 को केन्द्रीय सरकार के आदेश पर लावा चीफशिप को जयपुर राज्य में शामिल कर कर लिया गया जबकि कुशलगढ़ की चीफशिप पहले से ही बाँसवाड़ा रियासत का अंग बन चुकी थी। श्री शास्त्री की मंत्रिपरिषद में सर्वश्री सिद्धराज ढड्ढा (जयपुर) प्रेमनारायण माथुर और भूरेलाल बया (दोनों उदयपुर) वेदपाल त्यागी (कोटा), फूलचन्द बापणा नृसिंह कछवाहा और रावराजा हणूतसिंह (तीनों जोधपुर) और रघुवर दयाल गोयल (बीकानेर) को मंत्रियों के रूप में शामिल किया गया। जयपुर महाराजा सवाईमानसिंह को आजीवन राजप्रमुख, उदयपुर महाराणा भूपालसिंह को महाराज प्रमुख, कोटा के महाराज श्री भीमसिह को उपराजप्रमुख व श्री हीरालाल शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया। श्री पी. सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित कमेटी की सिफारिशों पर जयपुर को राजस्थान की राजधानी घोषित किया गया हाई कोर्ट जोधपुर में, शिक्षा विभाग बीकानेर में, खनिज और कस्टम व एक्साइज विभाग उदयपुर में, वन और सहकारी विभाग कोटा में एवं कृषि विभाग भरतपुर में रखने का निर्णय किया गया।             

पंचम चरण संयुक्त वृहत्तर राज.(15 मई 1949) :

भारत सरकार ने मत्स्य संघ को वृहत्त राजस्थान में मिलाने हेतु शंकरराव देव समिति गठित की जिसकी सिफारिश पर मत्स्य संघ को वृहत् राजस्थान में मिला दिया। वहाँ के प्रधानमंत्री श्री शोभाराम को शास्त्री मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया। 

षष्ठम चरण राजस्थान (जनवरी, 1950):

मत्स्य की तरह सिरोही के विलय के प्रश्न पर भी राजस्थानी और गुजराती नेताओं के मध्य काफी मतभेद थे। गृहमंत्री बल्लभभाई पटेल एवं अन्य नेता सिरोही को बम्बई प्रांत में मिलाने का दबाव बना रहे थे, जबकि राजस्थान के सभी नेता संपूर्ण सिरोही जिले को राजस्थान का अंग बनाने हेतु प्रयत्नशील थे अंततः जनवरी 1950 में सिरोही का विभाजन करने और आबू व देलवाड़ा तहसीलों को बम्बई प्रांत और शेष भाग को राजस्थान में मिलाने का फैसला लिया गया। इसकी क्रियान्विति 7 फरवरी, 1950 को हुई। गृहमंत्री बल्लभभाई पटेल के प्रभाव के कारण आबू और देलवाड़ा को बम्बई प्रान्त में मिला दिया गया। इसकी राजस्थान वासियों में व्यापक प्रतिक्रिया हुई जिसके 6 वर्ष बाद राज्यों के पुनर्गठन के समय इन्हें वापस राजस्थान को देना पड़ा। 26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान लागू होने पर राजपूताना के इस भू-भाग को विधिवत 'राजस्थान' नाम दिया गया। 

सप्तम चरण (1नवम्बर 1956) 


राज्य पुनर्गठन आयोग (श्री फजल अली की अध्यक्षता में गठित) की सिफारिशों के अनुसार सिरोही की आबू  व दिलवाड़ा तहसीलें, मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की मानपुरा तहसील का सुनेल टप्पा व अजमेर-मेरवाड़ा क्षेत्र राजस्थान में मिला दिया गया तथा राज्य के झालावाड़ जिले का सिरोंज क्षेत्र मध्यप्रदेश में मिला दिया गया। 

इस प्रकार विभिन्न चरणों से गुजरते हुए रास्थान निर्माण की प्रक्रिया 1 नवम्बर, 1956 को पूर्ण हुई और राजस्थान का वर्तमान स्वरूप अस्तित्व में आया।
महत्त्वपूर्ण तथ्यः
बांसवाड़ा के महारावल चन्द्रवीर सिंह ने राजस्थान संघ के निर्माण के समय विलय पत्र पर हस्ताक्षर करते समय यह कहा कि "मैं अपने डेथ वारन्ट पर हस्ताक्षर कर रहा हूँ। , 

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में तीन श्रेणी के राज्य थे:-
• 'ए' श्रेणी- वे राज्य, जो पूर्व में प्रत्यक्ष ब्रिटिश नियंत्रण में थे जैसे बिहार, बम्बई, मद्रास आदि। इनके प्रमुख राज्यपाल (गवर्नर) कहलाते थे।

• 'बी' श्रेणी- वे राज्य, जो स्वतंत्रता के बाद छोटी-बड़ी रियासतों के एकीकरण द्वारा बनाये गए थे, जैसे राजस्थान, मध्य भारत आदि। इनके प्रमुख 'राजप्रमुख' कहलाते थे।

• 'सी' श्रेणी- ये वे छोटे-छोटे राज्य थे, जिन्हें ब्रिटिश काल में चीफ कमिश्नर के प्रान्त कहा जाता था जैसे अजमेर, दिल्ली। 1956 में संविधान के 7वें संशोधन द्वारा 'ए' व 'बी' श्रेणी का भेदभाव समाप्त कर दिया गया तथा राजप्रमुख के स्थान पर राज्यपाल का पद सृजित हुआ। अब केवल दो ही प्रकार के राज्य क्षेत्र रह गये राज्य एवं केन्द्र शासित क्षेत्र ।

* मेवाड़ महाराणा उदयपुर ने राजस्थान की सभी रियासतों को मिलाकर 'राजस्थान यूनियन' का गठन करने हेतु 25-26 जून, 1946 को उदयपुर में राजपूताना, गुजरात एवं मालवा के नरेशों का सम्मेलन बुलाया। उनका राजस्थान यूनियन के गठन का प्रयास असफल रहा। इसी तरह के असफल प्रयास जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह, कोटा महाराव भीमसिंह (हाड़ौती संघ हेतु ) एवं डूंगरपुर महारावल लक्ष्मणसिंह (वागड़ संघ हेतु) ने भी किए थे।

भारतीय संविधान परिषद में मेवाड़ से भेजे जाने वाले प्रतिनिधियों में सर टी.वी. राघवाचारी और माणिक्य लाल वर्मा थे। जोधपुर से सी. एस. वैंकटाचारी और श्री जयनारायण व्यास को भेजा गया।

19 जुलाई, 1948 को लावा ठिकाने (चीफशिप) को केन्द्रीय सरकार के आदेश से जयपुर रियासत में शामिल कर दिया गया।

धौलपुर के शासक महाराणा उदयभानसिंह धौलपुर रियासत को भारत संघ में मिलाने के लिए सम्मिलन पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले राज्य के अंतिम शासक थे। शेष सभी रियासतें इससे पहले भारत संघ में मिल गई थी।
.स्वतंत्रता के समय राजस्थान की 19 देशी रियासतों में मेवाड़ रियासत सबसे । प्राचीन रियासत थी। जोधपुर रियासत सबसे बड़ी एवं शाहपुरा रियासत सबसे छोटी रियासत थी।

.राजस्थान का एकीकरण 18 मार्च, 1948 से प्रारंभ हुआ जो 1 नवंबर, 1956 को सात चरणों में जाकर पूर्ण हुआ। एकीकरण की इस संपूर्ण प्रक्रिया में कुल 8 वर्ष 7 माह एवं 14 दिन का समय लगा।

केन्द्र सरकार के आदेश पर किशनगढ़ के महाराजा सुमेरसिंह ने 26 सितंबर, 1947 को किशनगढ़ रियासत का विलय अजमेर-मेरवाड़ा के केन्द्र प्रशासित प्रदेश में करने के विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये थे। जिसे बाद में प्रांतीय नेताओं के विरोध के कारण रद्द कर दिया गया। 
स्वतंत्रता के समय देश की सभी देशी रियसतों को 14 अगस्त, 1947 तक भारत में शामिल होने के विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने का समय दिया गया
था।

धौलपुर नरेश उदयभानु सिंह ने भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खाँ के साथ मिलकर जोधपुर, उदयपुर, जैसलमेर आदि रियासतों के शासकों से संपर्क कर उन्हें पाकिस्तान में मिलाने का प्रयास किया था।

सातवें संविधान संशोधन अधिनियम 1956 के तहत् सभी राज्यों का पुनर्गठन किया गया, जिसमें 1 नवम्बर, 1956 से राज्यों की 'बी' एवं 'सी'श्रेणियाँ समाप्त कर केवल राज्य एवं केन्द्र प्रशासित प्रदेश बनाये गये। 'बी' श्रेणी राज्यों में राजप्रमुख का पद समाप्त कर राज्यपाल (Governor) का पद सृजित किया।

संयुक्त वृहत्त राजस्थान (15 मई, 1949) के गठन के समय राज्य के प्रधानमंत्री हीरालाल शास्त्री थे। छठे चरण में सिरोही का विलय भी इन्हीं के कार्यकाल में हुआ था। सातवें चरण (1 नवम्बर, 1956) के समय राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया थे।

उदयपुर महाराणा ने 11 अप्रैल, 1948 को उदयपुर रियासत के संयुक्त राजस्थान में विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये थे।

• 28 फरवरी, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर एवं करौली के शासकों ने चारों रियासतों के मत्स्य संघ में शामिल होने के विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये थे। विलय को अमली जामा 15 मई, 1949 को पहनाया जा सका।

0 Comments: