Rajasthan ke Pramukh Jain Mandir - राजस्थान के प्रमुख जैन मंदिर
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Rajasthan ke Pramukh Jain Mandir - राजस्थान के प्रमुख जैन मंदिर
गोड़वाड, सिरोही,आबू, मेवाड़ व गुजरात में जैन धर्म में महावीर स्वामी तीर्थंकर के जीवन्त स्वामी स्वरूप की परिचायक मूर्तिया सर्वाधिक संख्या में निर्मित हुई है।
ऋषभदेव जैन मंदिर, उदयपुर
धूलेव (उदयपुर) कोयल नदी के तट पर आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का विशाल मंदिर स्थित है। इस मंदिर में दिगम्बर, श्वेताम्बर, वैष्णव, शैव, भील आदि सभी वर्गों के लोग पूरी श्रद्धा के साथ भगवान की पूजा-उपासना करते हैं। यहाँ भगवान की अर्चना में केसर का भरपूर उपयोग होने के कारण, इस तीर्थ को 'केसरियाजी / केसरियानाथजी / धुलैव का धणी या कालाजी' के नाम से भी जाना जाता है।
देलवाड़ा के जैन मंदिर (सिरोही)
माउण्ट आबू (सिरोही)
के बस अड्डे से लगभग डेढ़ मील की पाँच प्रमुख दूरी पर देलवाड़ा के मन्दिर स्थित है।
देलवाड़ा के जैन मंदिरों का निर्माण परमार काल में 11वीं सदीं में हुआ था। यहाँ कुल
मंदिर स्थित है। जिनमें से दो मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण
है।
विमल वसही आदिनाथ (ऋषभदेव) जैन मंदिर-
यह देलवाड़ा के जैन मंदिरों में प्रमुख मंदिर है।
जिसका निर्माण गुजरात के सोलंकी राजा भीमदेव के मंत्री विमलसाह ने, आबू के तत्कालीन
परमार राजा घुंघरू से भूमि लेकर 1031 ई. में बनवाया था, इसी कारण इसे विमल वसहि मंदिर
कहते हैं। इस मंदिर का शिल्पी कीर्तिधर था
ध्यातव्य रहे- कर्नल जेम्स टॉड ने इस मंदिर के बारे में कहा है
कि 'भारत देश के भवनों में ताजमहल के बाद यदि कोई भवन है तो वह विमलवसही का मंदिर है।"
लूणवसही नेमिनाथ का जैन मंदिर-
यह मंदिर देलवाड़ा के जैन मंदिरों के समूह में दूसरा प्रमुख
मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण में चालुक्य राजा वीर धवल के महामंत्री तेजपाल व वास्तुपाल
ने 1280/ 31 ई. में महान शिल्पी शोमनदेव के निर्देशन में करवाया था। यह मंदिर जैनियों
के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ का है। इस मंदिर को 'देवरानी-जेठानी का मंदिर' भी कहते हैं।
- पित्तलहर या भीमाशाह का जैन मंदिर
- पाश्र्वनाथ जैन मंदिर
- महावीर स्वामी जैन
मंदिर
नाकोड़ा का पार्श्वनाथ मंदिर, बाड़मेर
बालोतरा (बाड़मेर)
से दूर भाकरिया नामक पहाड़ी पर स्थित मरू प्रदेश का यह अभिनव तीर्थ नाकोड़ा, मेवा नगर/
वीरमपुर के नाम से जाना जाता है जो पार्श्वनाथ के जैन मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। भक्त
इन्हें 'जागती जोत एवं हाथ का हुजूर' कहते हैं। नाकोड़ा बाड़मेर जिले में स्थित प्रसिद्ध
जैन धार्मिक केन्द्र है।
रणकपुर जैन मंदिर (पाली)
रणकपुर (पाली) का
जैन मंदिर उत्तरी भारत के श्वेताम्बर जैन मंदिरों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।
यहाँ स्थित मंदिरों में म तीन जैन मंदिर व एक वैष्णव मंदिर है।
आदिनाथ (ऋषभदेव) जैन मंदिर-
मथाई नदी के किनारे स्थित इस मंदिर की भूमि पोसवाल धरणशाह सेठ
ने मेवाड़ के महाराणा कुंभा से खरीदी थी और उसी धरणशाह ने इस मंदिर का निर्माण करवाया
था अत: इसे 'धरणी विहार' भी कहते हैं। इस मंदिर को 'रणकपुर का चौमुखा मंदिर' कहते हैं।
इस मंदिर में कुल 24 मण्डप, 84 शिखर और 1444 स्तंभ हैं। स्तंभों को इस प्रकार खड़ा
किया गया है कि मंदिर में कहीं भी खड़े होने पर सामने की प्रतिमा दिखाई देती हैं, इसी
कारण इसे 'स्तंभों का वन' कहते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार की छत पर तीर्थंकर ऋषभदेव
की माता मारूदेवी की हाथी पर आसीन प्रतिमा है। प्रसिद्ध वास्तुशास्त्री फर्ग्यूसन ने
कहा है, कि "मैं अन्य ऐसा कोई भवन नहीं जानता जो इतना रोचक व प्रभावशाली हो या
जो स्तम्भों की व्यवस्था में इतनी सुन्दरता व्यक्त करता हो।"
नेमिनाथ का जैन मंदिर-
चौमुखा मंदिर के समीप नेमिनाथजी का मंदिर स्थित है। इस मंदिर
की दीवारों पर नग्न और संभोग करते हुए युगलों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं, इसलिए इस
मंदिर को 'पातरियाँ रो देहरो' (वेश्याओं का मंदिर) कहते हैं।
पार्श्वनाथ जैन मंदिर-
पार्श्वनाथजी का मंदिर नेमिनाथजी के मंदिर के साथ
में ही है।
सूर्य नारायण का मंदिर-
सूर्य नारायण का मंदिर पार्श्वनाथ मंदिर से थोड़ी दूरी पर बना हुआ है।
श्री महावीरजी जैन मंदिर, करौली
गंभीरी नदी के किनारे
करौली जिले में स्थित श्रीमहावीरजी विश्वविख्यात जैन समुदाय का सबसे बड़ा लोकतीर्थ
है।
मँछाला मवीर, घाणेराव (पाली)
मंदिर में स्थित महावीर
स्वामी की मूर्ति की विशेषता यह है कि मूर्ति के मुख पर मूंछे हैं।
आहड़ के जैन मंदिर (उदयपुर)
यहाँ 10वीं शताब्दी
में निर्मित जैन मंदिरों का समूह है जहाँ आचार्य जगच्चंद सूरि को 12 वर्षों के कठोर
तपोरांत तत्कालीन शासक रावल जैनसिंह ने 'तथा' का विरुद्ध प्रदान किया था। परिणामस्वरूप
जगच्चन्द सूरि की शिष्य परम्परा 'तपागच्छ' के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह स्थान तपागच्छ
की उद्भव स्थली के रूप में जाना जाता है।
त्रिकाल चौबीसी जैन मंदिर (हाड़ौती)
इस जैन मंदिर को त्रिकाल
चौबीसी मंदिर इसलिए कहते हैं, क्योंकि इस में जैनियों के तीनों कालों के 72 तीर्थंकरों
की प्रतिमाएं विराजित है। यह मंदिर राज्य का दूसरा व हाड़ौती प्रदेश का प्रथम मंदिर
है। संपूर्ण भारत देश में इस प्रकार के लगभग 10 मंदिर हैं और राज्य का दूसरा त्रिकाल
चौबीसी मंदिर उदयपुर क्षेत्र में स्थित है।
शृंगार चंवरी (चित्तौड़गढ़)
चित्तौड़गढ़ दुर्ग
में राजपूत व जैन स्थापत्य कला के समन्वय का एक उत्कृष्ट नमूना है जो 'शृंगार चंवरी'
के नाम से प्रसिद्ध है।
फालना का जैन मंदिर (पाली)
बेजोड़ स्थापत्य कला
पर सैंकड़ों किलोग्राम सोने का शृंगार केवल पाली जिले के फालना में ही देखने को मिलता
है। इसी कारण फालना के इस मंदिर को 'मिनी मुंबई' व 'गेटवे ऑफ गोल्डन' के नाम से भी
जाना जाता है। यह मंदिर त्रिशिखरी हैं जो प्रसिद्ध जैनतीर्थ रणकपुर और देलवाड़ा मंदिरों
की तर्ज पर बना हुआ है।
भांडाशाह जैन मंदिर/घी वाला मंदिर
बीकानेर नगर की स्थापना
से 24 वर्ष पूर्व बने भांडाशाह जैन मंदिर को सुमति नाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता
है। जैन धर्म के पाँचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ का यह मंदिर घी वाले मंदिर के नाम से भी
जाना जाता है। तीन मंजिला इस मंदिर का निर्माण गंगा शहर भीनासर के घी के व्यवसायी भांडाशाह
ओसवाल द्वारा संवत 1488 में करवाया गया था। इस मंदिर को 'त्रिलोक दीपक प्रसाद' भी कहा
जाता है।
चमत्कार जी जैन मंदिर ( सवाई माधोपुर)
सवाई माधोपुर शहर
में श्री चमत्कारजी का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में स्फटिक पाषाण की बनी भगवान ऋषभदेव
की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। मंदिर की व्यवस्था श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र कमेटी
चमत्कार जी द्वारा संचालित है। इस स्थान पर प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा को मेला भरता है।
ध्यातव्य रहे-तिजारा जैन मंदिर (अलवर), नौगाँवा के जैन मंदिर,
शांतिनाथ जैन मंदिर (झालावाड़), चाँदखेड़ी का जैन मंदिर, चाँदखेड़ी, नागेश्वर पार्श्वनाथ
मंदिर (झालावाड़), भीनमाल (जालौर) का जैन मंदिर (यह देश का सबसे बड़ा जैन मंदिर है)
- विश्व का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर 'पुष्कर' (अजमेर), भारत का एकमात्र सिंह पर सवार गणेश मंदिर 'हेरांभ गणपति मंदिर' (बीकानेर) में है, तो राजस्थान का एकमात्र विभीषण मंदिर ' कैथून' (कोटा) में है।
- भारत का एकमात्र त्रिनेत्र गणेश मंदिर 'रणथंभौर' (सवाई माधोपुर), राजस्थान का एकमात्र नृत्यरत गणेश मंदिर 'सरिस्का' (अलवर), भारत का एकमात्र 'बाजणा गणेश' मंदिर माउण्ट आबू (सिरोही), राजस्थान एकमात्र खड़े गणेश जी का मंदिर कोटा, राजस्थान का एकमात्र लक्ष्मण मंदिर 'भरतपुर' में है, तो राजस्थान का एकमात्र 'रावण मंदिर' मण्डोर (जोधपुर) में है।
- भगवान सूर्य के जूते पहने मूर्ति वाला एकमात्र मंदिर सात सहेली मंदिर' झालरापाटन (झालावाड़), दाढ़ी मूँछ वाले हनुमान जी का एकमात्र मंदिर 'सालासर' (चूरू) में है, तो ताजमहल के समकक्ष मंदिर (कर्नल टॉड के अनुसार) 'विमलवसही / आदिनाथ मंदिर' दिलवाड़ा (सिरोही) है। राजस्थान का सर्वाधिक धनी मंदिर 'साँवलिया सेठ का मंदिर', मूछाँला महावीर का मंदिर पाली का जैन मंदिर है। तो चौबीस मंदिरों की नगरी 'औसियाँ' (जोधपुर) में है।
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