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Rajasthan ke Tyohar Trick - राजस्थान के त्योहार

Rajasthan ke Tyohar Trick - राजस्थान के त्योहार

 भारत में हिन्दू त्योहारों की शुरूआत श्रावण मास की शुक्ल तृतीया से होती है तथा चैत्र शुक्ल तृतीया पर समाप्त होता है। इसी कारण राजस्थान का सबसे पहला त्योहार छोटी तीज आता है, तो अंतिम त्योहार-गणगौर आता है, इसी कारण राजस्थान में एक कहावत प्रचलित है, कि तीज त्योहारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर

ध्यातव्य रहे - त्योहारों की नगरी जयपुर को कहते हैं।

ग्रिगोरियन कलैण्डर (अंग्रेजी कलैण्डर)

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वाधिक मान्य एवं प्रचलित कलैण्डर जिसका प्रारम्भ 1 जनवरी से होता है एवं अंत 31 दिसम्बर को होता है।

राष्ट्रीय पंचांग-

Rajasthan ke Tyohar Trick - राजस्थान के त्योहार
Rajasthan ke Tyohar Trick - राजस्थान के त्योहार


हमारा राष्ट्रीय पंचांग शक संवत पर आधारित है, जिसका प्रथम माह चैत्र तथा अंतिम माह फाल्गुन होता है। राष्ट्रीय पंचांग को भारत के संविधान में 22 मार्च, 1957 को स्वीकारा गया था।

विक्रम संवत्-

इसका प्रारम्भ 57 ई.पू. (B.C.) हुआ था। विक्रम संवत् का प्रारम्भ चैत्र शुक्ला एकम् से होता है जबकि अंत चैत्र अमावस्या को होता है। ध्यान रहे विक्रम संवत् अंग्रेजी कलैण्डर - से 57 वर्ष आगे चलता है। अतः यदि हमें पूछा जाये कि अंग्रेजी कलैण्डर या ईस्वी सन् के अनुसार अभी 2022 चल रहा है, तो विक्रम संवत् का कौनसा सन् होगा = 2022+57 = 2079 विक्रम संवत् होगा।

शक संवत्

इसका प्रारम्भ कनिष्क के काल में 78 ई.पूर्व. (B.C.) हुआ था। शक संवत् का प्रारम्भ चैत्र माह से होता है जबकि अंत फाल्गुन माह में होता है। ध्यान रहे शक संवत् अंग्रेजी कलैण्डर से 78 वर्ष पीछे चलता है अत: यदि हमें पूछा जाये कि अंग्रेजी कलैण्डर या ईस्वी सन् के अनुसार अभी 2022 चल रहा है, तो शक संवत् का कौनसा सन् होगा =2022 – 78 = 1944 शक संवत् होगा। भारत के हिन्दू महीने शक संवत पर आधारित होते हैं।

ध्यातव्य रहे-विक्रम संवत् / शक संवत् में लगभग 354 दिन (29½ x 12 ) होते हैं। अंग्रेजी माह व शक / विक्रम संवत् में साम्यता बैठाने के लिए प्रत्येक तीसरे वर्ष में एक माह को दो बार गिना जाता है। उस माह को अधिमास कहते हैं और इस माह में दान पुण्य आदि किये जाते हैं। शक् / विक्रम संवत् के शुरू में चैत्र माह के 15 दिन व बाकी बचे 15 दिन वर्ष के अंत में आते हैं।

  • 1-15 (15वें दिन अमावस्या) - कृष्ण पक्ष / काली रातें / बुदी 
  • 16-30 (30वें दिन पूर्णिमा) शुक्ल पक्ष / चांदनी रातें / सुदी

हिजरी सन्- 

यह चन्द्रमा पर आधारित होता है। हिजरी सन् का पहला माह मुहर्रम तथा अंतिम माह जिलहिज होता है।

महीनों के नाम

हिन्दू माह

अंग्रेजी माह

हिजरी कलैण्डर

 

चैत्र (अप्रैल से शुरू)

 

जनवरी

मोहर्रम (नवम्बर से शुरू)

 

वैशाख

फरवरी

सफर

ज्येष्ठ

मार्च

रबी-उल-अव्वल

 

आषाढ़

अप्रैल

रबी-उल-सानी

 

श्रावण

मई

जमादि-उल-अत्वल

 

भाद्रपद

जून

जमादि-उल-सानी

 

आशिवन

जुलाई

रज्जब

 

कार्तिक

अगस्त

सावन

 

मार्गशीर्ष

सितम्बर

रमजान

 

पौष

अक्टूबर

शव्वाल

 

माघ

नवम्बर

जिल कद्र

 

फाल्गुन

दिसम्बर

जिल-हिज

 

ये भी जानें :

ग्रीष्म ऋतु = वैशाख- ज्येष्ठ

वर्षा ऋतु  = आषाढ़ - श्रावण

शरद ऋतु = भाद्रपद - आश्विन

हेमन्त ऋतु = कार्तिक - मार्गशीर्ष

शिशिर ऋतु = पौष-माघ

बसन्त ऋतु = फाल्गुन-चैत्र

हिन्दुओं के प्रमुख त्योहार

नववर्ष (चैत्र शुक्ल एकम्) - इस दिन हिन्दुओं का नया वर्ष शुरु होता है। ध्यान रहे-नवरोज-इससे पारसियों के नववर्ष का प्रारम्भ होता है।

नवरात्र (चैत्र शुक्ल एकम् से नवमी) - 

इसे बसन्तीय नवरात्र / छोटे नवरात्रे कहते हैं। इन नौ दिनों में माँ दुर्गा की पूजा होती है। इस समय महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया जाता है।

सिंजारा (चैत्र शुक्ल द्वितीया) - 

यह त्योहार पुत्र वधु के प्रेम का प्रतीक है। गणगौर की तीज के एक दिन पहले ससुराल पक्ष से पुत्रवधु के लिए सामग्री भेजी जाती है, जिसे सिंजारा कहते हैं।

गणगौर (चैत्र शुक्ल तृतीय)- 

राजस्थान में सर्वाधिक गीतों वाला त्योहार गणगौर ही है, जिसमें कुँवारी कन्याएं मनवांछित वर प्राप्ति के लिए एवं सुहागन स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी आयु के लिए शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। गण को महादेव तथा गौर को पार्वती का स्वरूप मानकर पूजते है। गणगौर पार्वती के गौने का सूचक है क्योंकि इस दिन पार्वती का गौना हुआ था। है नवविवाहिताएँ शादी के बाद का पहला श्रावण अपने पीहर में विताती है और तीज के दीन नवविवाहिताएँ लहरिया ओढ़ती है। यह त्योहार चैत्र कृष्ण एकम् से शुरू होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलता है, अर्थात् यह त्योहार 16 दिन तक चलता है। (गणगौर पूजन उत्सव दिवस चैत्र शुक्ल तृतीया ही होता है, तो होली के लगभग 15 दिन बाद गणगौर का त्यौहार आता है) गणगौर की सवारी जयपुर की प्रसिद्ध है तथा इस दिन सर्वाधिक घूमर नृत्य किया जाता है। बिना ईसर की गवर जैसलमेर में पूजी जाती है, तो धींगा गणगौर व बेंतमार मेला जोधपुर में वैशाख कृष्ण तृतीया को लगता है। (Imp : मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह प्रथम ने वैशाख कृष्ण तृतीया से मेवाड़ में धींगा गणगौर मनाने की शुरूआत की। गुलाबी गणगौर नाथद्वारा (राजसमंद) में चैत्र शुक्ल पंचमी को मनाते हैं।)

अशोकाष्टमी (चैत्र शुक्ल अष्टमी) - 

इस दिन अशोक के पेड़ की पूजा की जाती है।

रामनवमी (चैत्र शुक्ल नवमी) - 

इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ तथा व्यापारी इस दिन अपने बही खाते बदलते हैं। माना जाता है कि इस दिन सरयू नदी पर स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है।

महावीर जयंती (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी)

हनुमान जयंती (चैत्र शुक्ल पूर्णिमा) - इस दिन सालासर (चुरू) बालाजी का मेला लगता है।

अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ल तृतीया)- इसे आख़ा तीज भी कहते हैं। इस दिन किसान सात अन्नों व हल की पूजा करके वर्षा की कामना करते हैं। यह एक अबूझ सावा है जिस दिन राजस्थान में न सर्वाधिक बाल विवाह होते है अतः हरविलास शारदा (अजमेर) द्वारा बाल विवाह निरोधक अधिनियम बनाया गया, जिसे ‘शारदा एक्ट' कहते हैं। इसी दिन से सतयुग व त्रेतायुग का आरम्भ हुआ एवं ब्राह्मण भगवान परशुराम की जयंती मनाते हैं। इसी दिन बीकानेर और उदयपुर राज्य की स्थापना की गई थी, इस दिन बीकानेर में पतंगें उड़ाई जाती है।

बुद्ध पूर्णिमा (वैशाख शुक्ल पूर्णिमा)- इसे पीपल पूर्णिमा भी कहते हैं।

वट सावित्री व्रत (ज्येष्ठ अमावस्या)- स्त्रियाँ बट/बरगद की पूजा करते हुए पुत्र व पति की मंगल कामना करती है। इसी कारण इसे बड़ अमावस्या भी कहते हैं।

  • गंगा दशमी (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी)
  • निर्जला ग्यारस (ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी)- इस दिन महिलाएं बिना जल ग्रहण किये व्रत करती है।।
  • गुप्त नवरात्र (आषाढ़ शुक्ल एकम् से नवमी)
  • भड़ल्या नवमी (आषाढ़ शुक्ल नवमी) - विवाह के लिए यह अंतिम सावा होता है।
  • देवशयनी ग्यारस (आषाढ़ शुक्ल एकादशी)- इस दिन से देवता चार माह हेतु सो जाते हैं। हिन्दूओं में इन चार महिनों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। इस एकादशी को हरिप्रबोधनी एकादशी / लाड़ी बोहनी भी कहते हैं।

 गुरु पूर्णिमा ( आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा) - 

इस दिन गुरु को यथाशक्ति दक्षिणा देकर पूजा की जाती है। इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा / कोकिला व्रत पूर्णिमा / शिव का शयनोत्सव भी कहते हैं।

 नागपंचमी (श्रावण कृष्ण पंचमी) - इस दिन नागों की पूजा की जाती है। जोधपुर में नागपंचमी का मेला लगता है।

निडरी नवमी (श्रावण कृष्ण नवमी) - इस दिन सांपों से बचने के लिए नेवलों की पूजा की जाती है।

कामिका एकादशी (श्रावण कृष्ण ग्यारस) - इस दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है।

हरियाली अमावस (श्रावण अमावस्या)

इस दिन घरों में खीर व मालपुए बनाए जाते हैं। इस दिन मांगलियावास (अजमेर) में कल्प वृक्ष का मेला लगता है।

छोटी तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया) - 

इसे श्रावणी तीज भी कहते हैं। छोटी तीज पार्वती का प्रतीक मानी जाती है। इस दिन से राजस्थान में त्योहारों का आगमन होता है। तीज का त्योहार महिलाओं के द्वारा मनाया जाता है, इसे श्रावणी तीज / मधुश्रवातीज / हरियाली तीज / झूला तीज / गोर्या तीज भी कहते हैं

ध्यातव्य रहे- तीज की सवारी जयपुर में निकलती है।

रक्षाबंधन (श्रावण पूर्णिमा) - 

यह भाई बहिन का त्योहार है इस दिन ब्राह्मण नया यज्ञोपवीत (जनेव) धारण करते हैं। इसे नारियल पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन श्रवण कुमार की पूजा की जाती है एवं अमरनाथ के जाने वाले यात्रियों को इस दिन अमरनाथ के अंतिम दर्शन होते हैं।

बड़ी तीज (भाद्रपद कृष्ण तृतीया) - 

इसे कजली तीज / सातुड़ी तीज / बूढ़ी तीज / उजली तीज / बड़ी तीज / गौरी व्रत कहते हैं। इस दिन नीम की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि बड़ी तीज के दिन परदेश गये पति को अपनी पत्नी के पास अवश्य आ जाना चाहिए, इस दिन चन्द्रमा और उसकी पत्नी रोहिणी की पूजा की जाती है। महिलाएँ इस दिन जो व्रत करती है, उसे गौरी व्रत कहते हैं और शाम को नीम की पूजा कर कहानी सुनकर चन्द्रमा के दर्शन कर अर्ध्य देकर भोजन प्राप्त करती है। कजली तीज का मेला बूँदी में लगता है।

संकट चौथ (भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी)

हल छठ (भाद्रपद कृष्ण षष्ठी) - 

इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म दिवस मनाते हुए हल की पूजा की जाती है।

ऊब छठ (भाद्रपद कृष्ण षष्ठी)- 

इस दिन अविवाहित (कुँवारी) बालिकाएँ पूरे दिन खड़े रहकर चन्द दर्शन करके भोजन करती है। इसे चंदन षष्ठीव्रत भी कहते है।

कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी) - 

इस दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था।

गोगा नवमी (भाद्रपद कृष्ण नवमी)- 

इस दिन गोगाजी का मेला गोगामेड़ी (नोहर-हनुमानगढ़) में भरता है। 

बछबारस (भाद्रपद कृष्ण द्वादशी) इसको गाँवों में गाय पूजनी (बछड़े वाली गाय की पूजा) भी कहते हैं। गाय व बछड़े की पूजा की जाती है, इसी कारण इस दिन गाय के दूध या दही का सेवन नहीं करते। इस दिन चाकू का प्रयोग भी नहीं किया जाता।

सतियाँ अमावस (भाद्रपद अमावस्या) -इस दिन घर की सतियों की पूजा की जाती है। ध्यान रहे विश्व का सबसे बड़ा सती माता का मंदिर राणी सती का मंदिर झुंझुनूं में है।

बाबे री बीज (भाद्रपद शुक्ल द्वितीया ) - इस दिन बाबा रामदेव जी का मेला शुरू हो जाता है, जो भाद्रपद शुक्ल एकादशी तक चलता है।

हड़तालिका तीज (भाद्रपद शुक्ल तृतीया) - इस दिन गौरी शंकर का पूजन किया जाता है। इसे रोठ तीज / हरियाली तीज भी कहते हैं।

गणेश चतुर्थी (भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी) - 

इस दिन को गणेश जी के जन्म दिवस के रूप में रणथम्भौर में गणेश जी का मेला लगता है। शेखावाटी अंचल में इस पर्व पर लड़कों के सिंजारे आते हैं। गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र में विशेष रूप से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ अपने सास-ससुर को घी-गुड़, नमक आदि का बना भोजन कराती है एवं चन्द्रमा के दर्शन नहीं किये जाते । इसे चतरा चौथ / शिव चतुर्थी भी कहते हैं।

ट्रिक

गणेश जी BSC पास है।

B- भाद्रपद

S – शुक्ल

C- चतुर्थी

ऋषि पंचमी (भाद्रपद शुक्ल पंचमी) -

इस दिन गंगा स्नान न का विशेष महत्त्व है और सप्तऋषि की पूजा की जाती है। माहेश्वरी समाज में इस दिन राखी (बहियों के) मनाते हैं।

राधाष्टमी (भाद्रपद शुक्ल अष्टमी) - 

इस त्योहार को राधाजी के जन्म दिवस के रूप में मनाते हैं और राजस्थान के किशनगढ़ कस्बे के नजदीक स्थित निम्बार्क सम्प्रदाय की प्रधान पीठ सलेमाबाद में मेला भरता है।

तेजादशमी (भाद्रपद शुक्ल दशमी) - 

इस दिन तेजाजी की याद में परबतसर (नागौर) में राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला भरता है। इस दिन खेजड़ली (जोधपुर) में विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला भरता है तथा खाती (जांगिड़) इस दिन विश्वकर्मा जयंती मनाते हैं।

ट्रिक

खेजड़ी के नीचे बसटेन पर तेजा जी विश्वकर्मा के साथ खड़े हैं।

खेजड़ी- खेजड़ली वृक्ष मेला

ब- भाद्रपद

स- शुक्ल

टेन- दशमी

तेजा- तेजा दशमी

विश्वकर्मा- जयंती विश्वकर्मा तेजा

जलझूलनी ग्यारस (भाद्रपद शुक्ल एकादशी)- 

इस दिन देवताओं की मूर्तियों को स्नान कराने के लिए मन्दिर से जलाशयों पर पालकियों (ब्याण) में बैठाकर ले जाया जाता है। इसे ढोला ग्यारस व देव झूलनी ग्यारस भी कहते हैं।

अनंत चतुर्दशी (भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी) - इस दिन गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।

श्राद्ध पक्ष (भाद्रपद पूर्णिमा से अमावस्या)

श्राद्ध पक्ष में अविवाहित बालिकाएँ घर की दीवार पर गोबर की सांझी बनाती है। उदयपुर के मच्छन्दर नाथ मंदिर की साँझियाँ इतनी प्रसिद्ध है कि उसका नाम ही साँझियाँ मंदिर पड़ गया। सांझी माता पार्वती का प्रतीक है।

ध्यात्वय रहे:- भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष के दौरान पूर्वजों की पूजा की जाती है।

नवरात्र (अश्विन शुक्ल 1 से 9 तक) - 

इन्हें शारदीय नवरात्र / बड़े नवरात्रे कहते हैं। इन नौ दिनों में दुर्गा माता की पूजा कर नौ कुँवारी कन्याओं को भोजन करवाया जाता है।

दुर्गाष्टमी (अश्विन शुक्ल अष्टमी)- 

इस दिन दुर्गा माता की पूजा की जाती है। यह त्योहार पश्चिमी बंगाल में बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं।

दशहरा (अश्विन शुक्ल दशमी)- 

यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक (भगवान राम ने रावण को मारा) है। भारत में दशहरा मेला मैसूर शहर का (कर्नाटक), राजस्थान में दशहरा मेला कोटा का प्रसिद्ध है, जिसकी शुरूआत 1579 में कोटा के महाराव माधो सिंह ने की थी, लेकिन इस मेले की प्रसिद्धि 1892 कोटा के महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय के काल में हुई। मुगल बादशाह जहाँगीर ने अजमेर में दशहरा उत्सव मनाया था, इसे विजयादशमी कहते है। इस दिन खेजड़ी वृक्ष / शमी / जांटी की पूजा की जाती है, तो इस दिन लीलटांस (कन्हैया लाल सेठिया ने लीलटांस नामक रचना लिखी थी) पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है।

शरद पूर्णिमा (अश्विन पूर्णिमा)- 

इस दिन चन्द्रमा अपनी षोडश (16) कलाओं से परिपूर्ण होता है, इसी कारण इसे रासपूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन रात को खीर बनाकर छत के ऊपर चन्द्रमा के सामने रख देते हैं व अगले दिन उस खीर को खाया जाता है, यह खीर आँखों की रोशनी के लिए लाभदायक होती है।

करवा चौथ (कार्तिक कृष्ण चतुर्थी)- 

इस दिन पति की दीर्घ आयु के लिए सुहागन स्त्रियाँ व्रत करती है तथा सांयकाल चन्द्रमा को अध्र्ध्य देकर भोजन करती है। यह स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय त्यौहार है, जो पूर्ण रूप से पति को समर्पित है।

अहोई अष्टमी (कार्तिक कृष्ण अष्टमी)- 

इस दिन पुत्रवती स्त्रियाँ संतान प्राप्ति के लिए निर्जल व्रत धारण करती है, जो तारे देखकर खोला जाता है और दीवार पर स्याउ माता एवं उनके बच्चों के चित्र बनाये जाते हैं।

तुलसी एकादशी (कार्तिक कृष्ण एकादशी)- 

इस दिन तुलसी जी की पूजा की जाती है। तुलसी को विष्णुप्रिया माना जाता है। तुलसी एकादशी को रमा एकादशी भी कहते हैं। इस दिन गाँवों में तुलसी व सालिग्राम की शादी होती है।

धन तेरस (कार्तिक कृष्ण तेरस)- 

इस दिन धन्वन्तरी (ऋषि) धन्वन्तरी का जन्म दिवस) एवं यमराज का पूजन कर धन की पूजा की जाती है तथा नये बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है।

रूप चतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चौदस) -

इसे छोटी दीपावली / यम चतुर्दशी / नरक चतुर्दशी भी कहते हैं।

दीपावली (कार्तिक अमावस्या)- 

यह हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्योहार है, जिसे पंचमहोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। दीपावली के मुख्य दीपक को जमदीपक कहते हैं। इस दिन भगवान राम 14 वर्षों के वनवास के बाद वापस अयोध्या लौटे थे। इस दिन हिन्दुओं के सभी घरों में लक्ष्मी पूजन (लक्ष्मी जी के पाने सांगानेर के प्रसिद्ध है) किया जाता है और बणीये अपने खाते बही बदलते हैं, तो जुआ खेलने का कार्यक्रम सर्वाधिक दीपावली पर होता है। इस दिन विक्रम संवत् का शुभारम्भ होता है। इसी दिन महावीर स्वामी व स्वामी दयानन्द सरस्वती का निर्वाण हुआ था।

गोवर्धन पूजा (कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा) - 

इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी। इसे अन्नकूट भी कहते हैं। राजस्थान में अत्रकूट महोत्सव नाथद्वारा (राजसमंद) का प्रसिद्ध है।

भैयादूज (कार्तिक शुक्ल द्वितीया) - 

यह भाई बहिन का त्योहार है, इसे यम द्वितीया के रूप में मनाया जाता है।

डोलछट (कार्तिक शुक्ल षष्ठी)

गोपाष्टमी (कार्तिक शुक्ल अष्टमी)- 

इस दिन कोए को ग्रास देकर उनकी परिक्रमा करके थोड़ी दूर उनके साथ जाने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

आँवला नवमी (कार्तिक शुक्ल नवमी)- आँवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहते हैं। 

देव उठनी ग्यारस (कार्तिक शुक्ल एकादशी) -

इसे प्रबोधिनी ग्यारस भी कहते हैं। इस दिन देवता चार माह सोकर उठते हैं व मांगलिक (विवाह के सावे शुरू) कार्यों की शुरुआत होती है। इस दिन भगवान विष्णु का विवाह तुलसी से करते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा (कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा)- 

इसे त्रिपुर पूर्णिमा / सत्यनारायण पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन गंगा/ पुष्कर स्नान करते हैं और इसी दिन पुष्कर (अजमेर) व कोलायत (बीकानेर) में मेला भरता है तथा सिक्ख समुदाय गुरुनानक जयंती मनाते हैं। दीपदान परम्परा का सम्बन्ध पुष्कर (अजमेर) व कोलायत (बीकानेर) से है।

ध्यान रहे- मार्गशीर्ष व पौष दो माह मलमास के माह होते हैं. अतः इसमें कोई मुख्य त्योहार नहीं मनाया जाता है।

मकर सक्रांति (14 जनवरी)- 

इस दिन सूर्य की पूजा कर दान पुण्य किया जाता है तथा बहुएँ रूठी हुई सास को मनाती है।

तिल चौथ (माघ कृष्ण चतुर्थी)- 

इसे संकट चौथ भी कहते हैं। इस दिन गणेश जी व चौथ माता (चौथ का बरवाड़ा, सवाईमाधोपुर) के तिलकुट्ठे का भोग लगाया जाता है।

षट्तिला एकादशी (माघ कृष्णा एकादशी)- इस दिन काली गाय व काले तिलों के दान का विशेष महत्त्व है।

मौनी अमावस (माघ अमावस)- यह मनु का जन्म दिवस है तथा इस दिन कुम्भ में भरने वाले मेले में सबसे बड़ा स्नान इसी दिन होता है। महाकुंभ हर 3 वर्ष बाद अलग-अलग जगह हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन व नासिक में आयोजित होता है अर्थात् वापस उसी जगह महाकुंभ 12 वर्ष बाद लगता है। 21वीं सदी का पहला महाकुंभ नासिक (महाराष्ट्र) में आयोजित हुआ था।

बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी)- 

इस दिन ऋतुराज बसंत का प्रथम आगमन दिवस है। इस दिन पीले वस्त्रों को धारण कर सरस्वती माँ, कामदेव व रति की विशेष रूप से पूजा की जाती है तथा घरों में पीले-मीठे चावल बनाकर खाये जाते हैं। राजस्थान में इस दिन शिक्षा विभाग द्वारा बालिकाओं को गार्गी पुरस्कार दिया जाता है।

महाशिवरात्रि (फाल्गुन कृष्ण तैरस)- 

यह त्योहार भगवान शिव की याद में मनाया जाता है। राजस्थान में शिवाड़ (सवाई माधोपुर) में घुश्मेश्वर महादेव का मेला भरता है।

ट्रिक

  • शिवजी फांके 13 बार
  • शिवजी- महाशिवरात्रि
  • फां- फाल्गुन
  • के- कृष्ण
  • 13 बार - त्रयोदशी (तेरस)

फूलेरा दूज (फाल्गुन शुक्ल द्वितीया ) 

खेलनी सातम (फाल्गुन शुक्ल सप्तमी)

आँवला एकादशी (फाल्गुन शुक्ल एकादशी) - 

इस दिन नये होने वाले बच्चे के ननिहाल व शादी हुई बुआ उसके लिए कुछ उपहार लाती है, जिसे ढूँढ भी कहते हैं।

होली (फाल्गुन पूर्णिमा)-

राजस्थान में सबसे रंगीला त्यौहार होली का आता है, जो भक्त प्रहलाद की स्मृति में मनाया जाता है। होली जलने पर डांड़ा को सुरक्षित बाहर निकालते हैं। डांडा प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है।

राजस्थान में लठ्ठमार होली

श्री महावीर जी (करौली), डेगची/डोलची/बाल्टीमार होली- बीकानेर, पत्थरमार होली- व्यावर (अजमेर) व बाड़मेर (Imp.: इस दिन इलोजी होलिका के होने वाले पति की सवारी बाड़मेर में निकाली जाती है, जो छेड़छाड़ के देवता के रूप में पूजे जाते हैं तथा कुँवारी लड़कियाँ व लड़के यहाँ आकर अपनी शादी की मन्नौती मांगते हैं), कोड़ा मार होली- भिनाय (अजमेर), बादशाह होली- नाथद्वारा (राजसमंद) (Imp: इस दिन बादशाह की सवारी ब्यावर, अजमेर में निकाली जाती है, इसमें बादशाह टोडरमल को बनाया जाता है और उसके आगे बीरबल भैरव नृत्य/ मयूर नृत्य करता हुआ आगे चलता है), दूध-दही की होली- नाथद्वारा (राजसमंद), गीली होली- करौली, देवर भाभी की होली-ब्यावर (अजमेर), गाबा-फाड़ होली- पुष्कर (अजमेर), गोबर के कण्डों की होली- गलियाकोट (डूंगरपुर), अंगारों की होली लालसोट (दौसा) व केकड़ी (अजमेर) तथा राड-रमण होली-भीलूड़ा गाँव (डूंगरपुर), भाटा गैर आहौर (जालौर), रोने बिलखने की होली (जोधपुर)। होली पर सांगोद (कोटा) में न्हाण, मेवाड़ में गैर नृत्य तथा आदिवासियों में भगोरिया खेला जाता है।

धूलण्डी (चैत्र कृष्ण एकम्) - 

यह रंगों का त्योहार है। होली के दूसरे दिन होलिका दहन की राख की पूजा की जाती है और विभिन्न रंगों से होली खेली जाती है। इस दिन से गणगौर पूजन शुरू हो जाता है।

शीतलाष्टमी (चैत्र कृष्ण अष्टमी)- 

इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है और घर में एक दिन पहले बना हुआ ठण्डा भोजन किया जाता है इसलिए इसे मारवाड़ क्षेत्र में बास्योड़ा भी कहते हैं और इस दिन शील की डूंगरी चाकसू (जयपुर) में शीतला माता का बहुत बड़ा मेला लगता है। शीतला अष्टमी का प्रतिक मृणमूर्ति है।

घुड़ला (चैत्र कृष्ण अष्टमी) -

यह मारवाड़ (जोधपुर) में राव सातल देव व घुडले खां की याद में मारवाड़ क्षेत्र में मनाया जाता है। इस त्योहार की शुरूआत मारवाड़ में घुड़ले खां की पुत्री गिंदोली के द्वारा करवाया गया था, तो इस त्योहार में किये जाने वाले घुड़ला नृत्य को प्रसिद्धि बोरूंदा (जोधपुर) में स्थित रूपायन संस्था ने दिलवायी, जिसमें मुख्य भूमिका स्वर्गीय कमल कोठारी की थी।

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