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Rajasthan me Jal Sanrakshan - जल संरक्षण

Rajasthan me Jal Sanrakshan - जल संरक्षण

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  • जल संरक्षण 
  • जल संरक्षण की तकनीक 
  • अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु

Rajasthan me Jal Sanrakshan - जल संरक्षण

A. जल संरक्षण - व्यर्थ बहते हुए पानी को रोकने उपयोग में लिए जाने वाले पानी का सीमित उपयोग करना जल प्रबंधन कहलाता है।

जल प्रबंधन की तकनीक

1. परम्परागत तकनीक

 

II. आधुनिक तकनीक

 

1. नाड़ी 2. टोबा 3. बावड़ी 4. झालरा 5 खड़ीन 6. बेरी / कुई 7. टांका / कुंड 8. जोहड़ 9 तालाब 10. झील

 

1. बांध          2. बूँद-बूँद एवं फव्वारा तकनीक

 

1.Rajasthan me Jal Sanrakshan परम्परागत तकनीक-                               

 1. नाड़ी :-                                                  

  • एक तरह का पोखर तालाब होता है। 
  • जिसमें वर्षा जल को संग्रहित किया जाता है। 
  • यह जल संरक्षण तकनीक पश्चिमी राजस्थान में प्रचलित है। 
  • 1520 में राजस्थान की प्रथम नाड़ी का निर्माण किया गया।

2. टोबा :-

  • यह नाड़ी से गहरे जल संग्रहण के स्रोत होते हैं जिसमें वर्षा जल का संग्रहित किया जाता है। 
  • इनमें संग्रहित जल का उपयोग पेयजल एवं सीमित सिंचाई के लिए किया जाता है।

3. बावड़ी (Stepwells) :-

  • बावड़ी गोलाकार एवं कलात्मक सीढ़ीनुमा कुएँ होते हैं। 
  • जल के लिए ये कुएँ एवं वर्षा जल पर निर्भर होते हैं। 
  • सर्वाधिक बावडी - बूंदी में स्थित है जिसे बावड़ियों का शहर कहा जाता है।

प्रमुख बावड़ियाँ

बावड़ी

स्थान

नवलखा बावड़ी

 

डुंगरपुर

लाहिनी बावडी

 

सिरोही

भूत बावडी

जोधपुर

अनारकली बावडी

बूँदी

चाँद बावडी

दौसा (आभानेरी)

बड़ी बावड़ी छोटी बावड़ी

 

 दौसा

दूध बावडी

सिरोही

त्रिमुखी बावडी

उदयपुर

रानी की बावडी

बूँदी

गुलाब बावडी

 

बूंदी

हाड़ी रानी की बावड़ी

 

टोडारायसिंह (टोंक)

 

नौ मंजिला बावडी

 

अलवर

4.झालरा :-

  • जल संग्रहण हेतु निर्मित आयताकार कुंड जो किसी झील या तालाब से जल प्राप्त करता है। 
  • झालरे के पानी का उपयोग धार्मिक रीति-रिवाजों के स्नान के लिए किया जाता है। 
  • इसके जल का उपयोग पेयजल के लिए नहीं किया जाता।

5.खड़ीन (प्लाया) -

  • पश्चिमी राजस्थान में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा जल संग्रहण के लिए जो अस्थायी पानी की झील बनायी जाती है। 
  • उसे खड़ीन (प्लाया) कहा जाता है। 
  • ये सर्वाधिक उत्तरी जैसलमेर में स्थित हैं।

6.बेरी (कुई) –

  • पश्चिमी राजस्थान / अन्तरराष्ट्रीय सीमावर्ती क्षेत्रों (जैसलमेर, बीकानेर ) में जल संग्रहण के लिए बनाये गए छोटे, गोलाकार एवं कम गहरे खड्डे को बेरी (कुई) कहा जाता है। 
  • यह जल के लिए तालाब एवं जोहड पर निर्भर होते है।

7.टांका / कुंड -

  • टैंक का निर्माण मुख्यतः पेयजल के उद्देश्य से घरों या सार्वजनिक स्थानों पर किया जाता है। जिसमें वर्षा जल (पालर पानी) संग्रहित होता है। 
  • जल की शुद्धता के लिए के लिए इसे ऊपर से ढ़का जाता है।

8. जोहड़-

  • ग्रामीण क्षेत्र में ढाल की ओर बहता हुआ वर्षा जल निम्न भूमि में एकत्रित होता है जिसे जोहड़ कहा जाता है। 
  • शेखावाटी में यह अधिक प्रचलित है जहाँ इन्हें पानी के कच्चे कुएँ कहा जाता है। 
  • जोहड पद्धति को पुर्नजीवित करने का श्रेय श्री राजेन्द्र सिंह (अलवर) को जाता है इन्हें "जोहड़ वाले बाबा" के नाम से जाना जाता है, जिन्हें रमन मैग्ससे अवॉर्ड दिया गया।

9.तालाब -

  • यह एक प्रकार का कृत्रिम या प्राकृतिक जलाशय होता है जिसका विस्तार एक वर्ग मीटर से दो हैक्टयेर के मध्य हाता है। जिसमें वर्ष में कम से कम चार माह जल उपलब्ध होता है।

प्रमुख तालाब

  • पदम तालाब, जंगली तालाब, काला तालाब, सुख तालाब रणथम्भौर (सवाई माधोपुर) सरेरी, खारी तालाब - भीलवाड़ा 
नोट:- राजस्थान में सिंचाई में तालाबों का उपयोग सर्वाधिक भीलवाड़ा में किया जाता है।

10. झील -

  • वर्षा जल व नदी जल द्वारा निर्मित जल बेसिन जो मुख्यतः चारों ओर स्थलीय भाग से घिरे रहते हैं। उसे झील कहा जाता है। 
  • राजस्थान में सर्वाधिक झीलें उदयपुर ( लेक सिटी) में है।

नोट:- राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना इसकी शुरूआत 1 अप्रैल 2016 में हुई। इसमें राजस्थान की 5 झीलें (पिछोला, फतेह सागर, नक्की, पुष्कर आनासागर ) शामिल है। बजट-केन्द्र:राज्य (60:40 )

II. Rajasthan me Jal Sanrakshan आधुनिक विधियाँ -

1. डैम / बांध परियोजना-

1.बहते हुए व्यर्थ पानी को रोककर विभिन्न उद्देश्य (सिंचाई, पेयजल, जल विद्युत) को पूरा करने के लिए डैम का निर्माण किया जाता हैं।

2. फव्वारा एवं बूंद बूंद सिंचाई तकनीक

  • राजस्थान में नर्मदा नहर क्षेत्र में इस तकनीक को अनिवार्य रूप लागू किया गया है। 
  • इस जल संरक्षण तकनीक को इजराइल से ग्रहण किया गया है।

अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु

  • स्वजल धारा परियोजना 1.शुरुआत - 2002 यह परियोजना केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति के लिए शुरू की गई।

2. मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान

शुरूआत- 27 जनवरी 2016 को गर्दनखेड़ी (झालावाड) से की गई है।

उद्देश्य- ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब एवं कुएं के जल स्तर में सुधार चारागाहों का विस्तार, कृषि उत्पादन को बढ़ाना।

जल स्वावलम्बन अभियान को 4 चरणों में चलाया गया।

चरण

तारीख

प्रथम चरण

27 जनवरी 2016

द्वितीय चरण

9 दिसम्बर 2016

तृतीय चरण

9 दिसम्बर 2017

 

चतुर्थ चरण

3 अक्टूबर 2018

3. अटल भू जल परियोजना - राजस्थान

  • शुरूआत -1 अप्रैल, 2021 (योजना का समय 2020-2021 से 2024 2025 तक) 
  • बजट - 6,000 करोड़ रूपये (राजस्थान के लिए 1429 करोड़ ) 
  • सहयोग - भारत सरकार एवं विश्व बैंक (50:50) 
  • शामिल क्षेत्र- इस योजना में देश के 7 राज्यों ( 78 जिलों एवं 8.350 ग्राम पंचायतों को शामिल किया है जिसमें राजस्थान के 17 जिलों को शामिल किया गया है।

नोट:- इस योजना में शामिल राज्य- राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक इत्यादि

उद्देश्य - भूजल के गिरते स्तर को रोकना एवं भूजल को बेहतर प्रबंधन करना।

4. राज्य जल नीति-

  • 18 फरवरी 2010 को जारी की गई। इस नीति के अनुसार जल उपलब्धता की प्राथमिकता का क्रम मानव पेयजल, पशु पेयजल, घरेलू कार्यों के लिए एवं कृषि कार्यों के लिए जलापूर्ति रखा गया है।

5. भूमिगत जल संसाधन मूल्याकंन -2020 के अनुसार राजस्थान में कुल 295 जल-ब्लॉक है। जिसमें -

क्षेत्र

जल उपयोग

 

संख्या

 

अति दोहित (Over Exploited)

More than 100%

203

गंभीर (Critical)

90-100%

23

अर्द्ध-गंभीर (Semi Critical)

70-90%

29

सुरक्षित (Safe)

Less than 70%

 

 

37

लवणीय (Saline)

-

3

नोट-1.अन्तर्राष्ट्रीय जल दिवस- 22 मार्च (Theme "Groundwater Making the invisible visible")

जल प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण अधिनियम- 1974

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