भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत - bhartiya itihas ke sahitya |
➽भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत
➽वेदों को भली-भाँति समझने के लिए छह वेदांगों की रचना हुई।
ये हैं-
- शिक्षा,
- ज्योतिष,
- कल्प,
- व्याकरण,
- निरूक्त
- छंद ।
➽भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणों में मिलता है ।
➽इसके रचयिता लोमहर्ष अथवा इनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं।
➽इनकी संख्या 18 है, जिनमें से केवल पाँच-मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्राह्मण एवं भागवत में ही राजाओं की वंशावली पायी जाती है ।
➽नोट : पुराणों में मत्स्यपुराण सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक है।
➽अधिकतर पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गये हैं ।
➽स्त्रियाँ शूद्र जिन्हें वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी, वे भी पुराण सुन सकते थे।
➽पुराणों का पाठ पुजारी मंदिरों में किया करते थे ।
➽स्त्री की सर्वाधिक गिरी हुई स्थिति मैत्रेयनी संहिता से प्राप्त होती है जिसमें जुआ. और शराब की भाँति स्त्री को पुरुष का तीसरा मुख्य दोष बताया गया है।
➽शतपथ ब्राह्मण में स्त्री को पूरुष का अर्धांगिनी कहा गया है|
➽स्मृतिग्रंथों में सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक मनुस्मृति मानी जातीहै।
➽यह शुंग काल का मानक ग्रंथ है।
➽नारद स्मृति गुप्त युग केविषय में जानकारी प्रदान करता है।
➽जातक में बुद्ध की पूर्वजन्म की कहानी वर्णित है ।
➽हीनयान काप्रमुख ग्रंथ 'कथावस्तु' है, जिसमें महात्मा बुद्ध का जीवन-चरितअनेक कथानकों के साथ वर्णित है ।
➽जैन साहित्य
➽जैन साहित्य को आगम कहा जाता है।➽जैनधर्म का प्रारंभिक इतिहास 'कल्पसूत्र' से ज्ञात होता है ।
➽जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में महावीर के जीवन-कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके संबंधों का विवरण मिलता है।
➽अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य (कौटिल्य या विष्णुगुप्त) है।
➽ह15 अधिकरणों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित है इससे मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।
➽संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण के द्वारा किया गया।
➽कल्हण द्वारा रचित पुस्तक राजतरंगिणी है, जिसका संबंध कश्मीर के इतिहास से है।
➽अरबों की सिंध-विजय का वृत्तांत चर्चनामा (लेखक-अली अहमद)में सुरक्षित है।
➽'अष्टाध्यायी' (संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक) के लेखक पाणिनि हैं ।
➽इससे मौर्य के पहले का इतिहास तथा मौर्ययुगीन
➽राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है।
➽कत्यायन की गार्गी-संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है, फिर भी इसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है ।
➽पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे, इनके महाभाष्य से शुंगों के इतिहास का पता चलता है।
➽विदेशी यात्रियों से मिलनेवाली प्रमुख जानकारी
➽यूनानी-रोमन लेखक
- टेसियस : यह ईरान का राजवैद्य था । भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय है।
- हेरोडोटस : इसे 'इतिहास का पिता' कहा जाता है । इसने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के भारत-फारस के संबंध का वर्णन किया है। परन्तु इसका विवरण भी अनुश्रुतियों एवं अफवाहों पर आधारित है ।
- सिकन्दर के साथ आनेवाले लेखकों में निर्याकस, आनेसिक्रटस तथा आस्टिोबुलस के विवरण अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय हैं ।
- मेगास्थनीज : यह सेल्युकस निकेटर का राजदूत था, जो चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आया था। इसने अपनी पुस्तक इण्डिका में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है ।
- डाइमेकस : यह सीरियन नरेश आन्तियोकस का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में आया था । इसका विवरण भी मौर्य-युग से संबंधित है।
- डायोनिसियस : यह मिस्र नरेश टॉलमी फिलेडेल्फस का राजदूत था, जो अशोक के राजदरबार में आया था।
- टॉलमी : इसने दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल' नामक पुस्तकलिखी ।
- प्लिनी : इसने प्रथम शताब्दी. में 'नेचुरल हिस्ट्री' नामक पुस्तकलिखी। इसमें भारतीय पशुओं, पेड़-पौधों, खनिज -पदार्थों आदि के बारे में विवरण मिलता है।
- पेरीप्लस ऑफ द इरिथ्रयन-सी : इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है। यह लेखक करीब 80 ई. में हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था। इसने उस समय के भारत के बन्दरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी दी है।
चीनी लेखक
- फाहीयान : यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था । इसने अपने विवरण में मध्यप्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है। इसने मध्यप्रदेश की जनता को सुखी एवं समृद्ध बताया है।
- संयुगन - यह 518 ई. में भारत आया । इसने अपने तीन वर्षों कीयात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियाँ एकत्रित कीं।
- ह्वेनसाँग : यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था। हेवेनसाँग 629 ई. में चीन से भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग एक वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशापहुँचा।भारत में 15 वर्षों तक ठहरकर 645 ई. में चीन लौट गया। वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौद्द्ध ग्रंथों को एकत्र कर ले जाने के लिए आया था।इसका भ्रमण वृत्तांत सि-यू-की नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है । इसने हर्षकालीन समाज, धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है । इसके अनुसार सिन्ध का राजा शूद्र था।नोट : ह्वेनसाँग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे।
- इत्सिंग : यह 7वीं शताब्दी के अन्त में भारत आया । इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है ।
अरबी लेखक
- अलबरुनी : यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। अरबी में लिखी गई उसकी कृति 'किताब-उल -हिन्द या तहकीक-ए-हिन्द (भारत की खोज) , आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्णस्रोत है। यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों,खगोल विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं सामाजिक जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, पूर्तिकला कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधार पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है। इसमें राजपूत-कालीन समाज, धर्म, रीति-रिवाज, राजनीति आदि पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है।
- इब्नबतूता : इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा- वृतांत जिसे रिहला कहा जाता है, 14वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा सबसे रोचक जानकारियाँ देता है। 1333 ई. दिल्ली पहुँचने पर इसकी विद्वता से प्रभावित होकर सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी या न्यायाधीश नियुक्त किया।
अन्य लेखक
- तारानाथ - यह एक तिब्बती लेखक था । इसने 'कग्युर तथा "तंग्युर' नामक ग्रंथ की रचना की । इनसे भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
- मार्कोपोलो : यह 13वीं शताब्दी के अन्त में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था। इसका विवरण पाण्ड्य इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है।
➽पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलनेवाली जानकारी
➽1400 ईसा पूर्व के अभिलेख 'बोगाज-कोई' (एशिया माइनर) से वैदिक देवता मित्र, वरुण, इन्द्र और नासत्य (अश्विनी कुमार) केनाम मिलते हैं।➽मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत 'होलियोडोरस' के वेसनगर (विदिशा) गरुड़ स्तम्भ लेख से प्राप्त होता है ।
➽सर्वप्रथम 'भारतवर्ष' का जिक्र हाथीगुम्फा अभिलेख में है ।
➽सर्वप्रथम दुर्भिक्ष का जानकारी देनेवाला अभिलेख सौहगौरा अभिलेख है ।
➽सर्वप्रथम भारत पर होनेवाले हूण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है।
➽सती-प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख (शासकभानुगुप्त) से प्राप्त होती है।
➽रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसौर अभिलेख से प्राप्तहोती है ।
➽कश्मीरी नवपाषाणिक पुरास्थल बुर्जहोम से गत्तावास (गड्ढा घर)का साक्ष्य मिला है । इनमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ होती थीं।
➽प्राचीनतम सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता है, इसी कोसाहित्य में काषार्पण कहा गया है ।
➽सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया
➽समुद्रगुप्त की वीणा बजाती हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत-प्रेमी होने का प्रमाण मिलता है।
➽अरिकमेडू (पुदुचेरी के निकट) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं।
नोट: सबसे पहले भारत के संबंध बर्मा (सुवर्णभूमि - वर्तमान में म्यांमार),मलाया (स्वर्णद्वीप), कंबोडिया (कंबोज) और जावा (यवद्वीप) से स्थापित हुए।
महत्वपूर्ण अभिलेख
अभिलेख। शासक
➽हाथीगुम्फा अभिलेख कलिंग राज खारवेल
(तिथि रहित अभिलेख)
➽जूनागढ़ (गिरनार) अभिलेख। रुद्रदामन
➽नासिक अभिलेख। गौतमी बलश्री
➽प्रयाग स्तम्भ लेख समुद्रगुप्त
➽ऐहोल अभिलेख पुलकेशिन- 2
➽मन्दसौर अभिलेख मालवा नरेशयशोवर्मन
➽ग्वालियर अभिलेख प्रतिहार नरेश भोज
➽भितरी एवं जूनागढ़ अभिलेख। स्कन्दगुप्त
➽देवपाड़ा अभिलेख। बंगाल शासक विजयसेन
★नोट: अभिलेखों का अध्ययन इपीग्राफी कहलाता है।
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